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कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) श्री कृष्ण हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं। उन्हें अक्सर “विष्णु के कृष्ण अवतार” के रूप में जाना जाता है। कृष्ण को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जिनमें कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश और द्वारकाधीश शामिल हैं।
कृष्ण एक आदर्श दार्शनिक और एक बुद्धिमान व्यक्ति थे जिन्हें बड़ी मात्रा में दैवीय संपदा का भी आशीर्वाद प्राप्त था। महाभारत के युद्ध के दौरान, कृष्ण ने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और उन्हें भगवद गीता का ज्ञान दिया। इसे कृष्ण की जीवन उपलब्धियों का शिखर माना जाता है। श्रीकृष्ण से जुड़े 108 नाम हैं।
इन नामों में सबसे लोकप्रिय कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) है, जो 40 छंदों से बना एक भक्ति गीत है। कई लोग भगवान कृष्ण को समर्पित त्योहारों जैसे जन्माष्टमी और दिवाली पर कृष्ण चालीसा का पाठ करते हैं।

कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa)
॥ दोहा कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa)॥
बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥
जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥
॥ चौपाई कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa)॥
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर नाग नथैया।कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरी तेरी।होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला।मोर मुकुट वैजयंती माला॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो।अका बका कागासुर मारयो॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।मसूर धार वारि वर्षाई॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो।कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो।कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मारयो।भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो।तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी।ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके।लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये।भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।शालिग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करी तत्काला।जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला।बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥
अस नाथ के नाथ कन्हैया।डूबत भंवर बचावत नैया॥
सुन्दरदास आस उर धारी।दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥
॥ दोहा कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa)॥
यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥
कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) का पाठ करने वाले को कई शुभ फलों की प्राप्ति होती है। कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) से का पाठ करने ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) का पाठ करने से, भगवान कृष्ण इसका पाठ करने वाले व्यक्ति के मन में निवास करते हैं और वे कलयुग के सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।
कहा जाता है कि कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) का नियमित रूप से पाठ करने से जीवन के सभी क्षेत्रों में सुख और आनंद की प्राप्ति होती है। कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa) का पाठ करने के लिए कोई विशेष दिन निर्धारित नहीं है, जब तक आपका मन शुद्ध है, आप किसी भी समय इसका पाठ कर सकते हैं।
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