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Shani Dev Chalisa | शनि चालीसा
शनि चालीसा (Shani Dev Chalisa) | हिन्दू शास्त्रों में शनि के बारे में कई कथाएं मिलती हैं। शनि देव को सूर्यदेव का पुत्र और कर्मफल दाता माना जाता है। हालांकि, शनि ग्रह के संबंध में कई भ्रांतियां भी हैं, जिसके कारण इसे मारक, अशुभ और दुखदायी माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी इसे दु:ख का कारण मानते हैं। शनिदेव मकर राशि के नियंत्रक हैं, जो कि उन्हें सबसे प्रिय राशि है। शनि की साढ़े साती के कारण मकर राशि के जातकों को ज्यादा कष्ट नहीं होता है साथ ही इस बात से भी कि शनि देव उनके रक्षक हैं। इसके अतिरिक्त, मकर राशि के लोगों पर शनि की कृपा होती है, जो आध्यात्मिक तपस्या, तपस्या, अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक हैं।

Shani Dev Chalisa
॥ दोहा शनि चालीसा (Shani Dev Chalisa)॥
श्री शनिश्चर देवजी,सुनहु श्रवण मम् टेर।
कोटि विघ्ननाशक प्रभो,करो न मम् हित बेर॥
॥ सोरठा शनि चालीसा (Shani Dev Chalisa)॥
तव स्तुति हे नाथ,जोरि जुगल कर करत हौं।
करिये मोहि सनाथ,विघ्नहरन हे रवि सुव्रन।
॥ चौपाई शनि चालीसा (Shani Dev Chalisa)॥
शनिदेव मैं सुमिरौं तोही।विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही॥
तुम्हरो नाम अनेक बखानौं।क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं॥
अन्तक, कोण, रौद्रय मनाऊँ।कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ॥
पिंगल मन्दसौरि सुख दाता।हित अनहित सब जग के ज्ञाता॥
नित जपै जो नाम तुम्हारा।करहु व्याधि दुःख से निस्तारा॥
राशि विषमवस असुरन सुरनर।पन्नग शेष सहित विद्याधर॥
राजा रंक रहहिं जो नीको।पशु पक्षी वनचर सबही को॥
कानन किला शिविर सेनाकर।नाश करत सब ग्राम्य नगर भर॥
डालत विघ्न सबहि के सुख में।व्याकुल होहिं पड़े सब दुःख में॥
नाथ विनय तुमसे यह मेरी।करिये मोपर दया घनेरी॥
मम हित विषम राशि महँवासा।करिय न नाथ यही मम आसा॥
जो गुड़ उड़द दे बार शनीचर।तिल जव लोह अन्न धन बस्तर॥
दान दिये से होंय सुखारी।सोइ शनि सुन यह विनय हमारी॥
नाथ दया तुम मोपर कीजै।कोटिक विघ्न क्षणिक महँ छीजै॥
वंदत नाथ जुगल कर जोरी।सुनहु दया कर विनती मोरी॥
कबहुँक तीरथ राज प्रयागा।सरयू तोर सहित अनुरागा॥
कबहुँ सरस्वती शुद्ध नार महँ।या कहुँ गिरी खोह कंदर महँ॥
ध्यान धरत हैं जो जोगी जनि।ताहि ध्यान महँ सूक्ष्म होहि शनि॥
है अगम्य क्या करूँ बड़ाई।करत प्रणाम चरण शिर नाई॥
जो विदेश से बार शनीचर।मुड़कर आवेगा निज घर पर॥
रहैं सुखी शनि देव दुहाई।रक्षा रवि सुत रखैं बनाई॥
जो विदेश जावैं शनिवारा।गृह आवैं नहिं सहै दुखारा॥
संकट देय शनीचर ताही।जेते दुखी होई मन माही॥
सोई रवि नन्दन कर जोरी।वन्दन करत मूढ़ मति थोरी॥
ब्रह्मा जगत बनावन हारा।विष्णु सबहिं नित देत अहारा॥
हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी।विभू देव मूरति एक वारी॥
इकहोइ धारण करत शनि नित।वंदत सोई शनि को दमनचित॥
जो नर पाठ करै मन चित से।सो नर छूटै व्यथा अमित से॥
हौं सुपुत्र धन सन्तति बाढ़े।कलि काल कर जोड़े ठाढ़े॥
पशु कुटुम्ब बांधन आदि से।भरो भवन रहिहैं नित सबसे॥
नाना भाँति भोग सुख सारा।अन्त समय तजकर संसारा॥
पावै मुक्ति अमर पद भाई।जो नित शनि सम ध्यान लगाई॥
पढ़ै प्रात जो नाम शनि दस।रहैं शनिश्चर नित उसके बस॥
पीड़ा शनि की कबहुँ न होई।नित उठ ध्यान धरै जो कोई॥
जो यह पाठ करैं चालीसा।होय सुख साखी जगदीशा॥
चालिस दिन नित पढ़ै सबेरे।पातक नाशै शनी घनेरे॥
रवि नन्दन की अस प्रभुताई।जगत मोहतम नाशै भाई॥
याको पाठ करै जो कोई।सुख सम्पति की कमी न होई॥
निशिदिन ध्यान धरै मनमाहीं।आधिव्याधि ढिंग आवै नाहीं॥
॥ दोहा शनि चालीसा (Shani Dev Chalisa)॥
पाठ शनिश्चर देव को,कीहौं ‘विमल’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन,हो भवसागर पार॥
जो स्तुति दशरथ जी कियो,सम्मुख शनि निहार।
सरस सुभाषा में वही,ललिता लिखें सुधार॥
शनि चालीसा (Shani Dev Chalisa) विश्वासियों द्वारा भगवान शनि से आशीर्वाद मांगने के लिए की जाने वाली प्रार्थना है। आमतौर पर, ज्योतिषी आस्तिक को शनि चालीसा (Shani Dev Chalisa) से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कुछ चीजें करने के लिए कहते हैं। एक आस्तिक को भगवान शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए शनि चालीसा (Shani Dev Chalisa) का तेईस हजार बार पाठ करना चाहिए।
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