मोहिनी एकादशी :Unveiling the story of mohini ekadashi - Gyan.Gurucool
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मोहिनी एकादशी व्रत कथा (mohini ekadashi)

 

mohini ekadashi कथा

 

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे कृष्ण! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी कथा क्या है? इस व्रत की क्या विधि है,
यह सब विस्तारपूर्वक बताइए। 

श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूं,
जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचन्द्रजी से कही थी। एक समय श्री राम बोले कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए,
जिससे समस्त पाप और दुःख का नाश हो जाए।

मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दुःख भोगे हैं। महर्षि वशिष्ठ ने सभी दुखों से मुक्त हो जाने के लिए  मोहिनी एकादशी की कथा कही जिसे सब ध्यान से सुनो।

 

mohini ekadashi कथा का विस्तार

 

(mohini ekadashi) मोहिनी एकादशी व्रत की कथा के अनुसार सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में धुतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहां धन धान्य से सम्पन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। 

वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुंए, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे।
सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे।  उसके 5 पुत्र थे – सुमना सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि । 

इनमें से पांचवां पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था।
वह वेश्या , दुराचारी मनुष्यों को की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर स्त्री के साथ भोग विलास करता तथा मद्य मांस का सेवन करता था।
इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था। 

इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था।
घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने कपड़े बेचकर निर्वाह करने लगा जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया।
वह अब भूख प्यास से अति दुःखी रहने लगा कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया। 

मोहिनी एकादशी

एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया।
मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया
और धनुष बाण लेकर पशु पक्षियों को मार मारकर खाने लगा।
एक दिन भूख प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुंच गया।

उस समय वैशाख मास था। और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे।
उनके भीगे वस्त्रों के छींटें उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई। 

वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं।
आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए।
उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की (mohini ekadashi) मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो।

इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।
इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए
और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। 

मोहिनी एकादशी

अंत: इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते जाते हैं।
संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके महात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गोदान का फल प्राप्त होता है।
इस एकादशी की कथा वैशाख मास के दान का पुण्य देने में सक्षम है।
अतः हर मनुष्य को यह व्रत अवश्य रखना चाहिए तथा कथा पढ़नी चाहिए। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार(mohini ekadashi) मोहिनी एकादशी की कथा महर्षि वशिष्ठ ने प्रभु श्री रामचन्द्र जी से कही थी।
धार्मिक ग्रंथों में(mohini ekadashi) मोहिनी एकादशी की तिथि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र मानी गई है।
इस एकादशी के दिन व्रत उपवास रखने से यह वैशाख मास के दान का पुण्य देती है।

वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की यह एकादशी समस्त पाप और दुखों का नाश करने वाली तथा सौभाग्य और धन का आशीर्वाद देने वाली मानी गई है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब मोहजाल से मुक्त हो जाता है। 

 

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