LYRIC
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (Baidyanath Jyotirlinga)कथा
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग(Baidyanath Jyotirlinga) मंदिर हिंदुओं का प्रमुख एवं प्रसिद्ध मंदिर है
इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा आराधना बाबा वैद्यनाथ के रूप में किया जाता है
यह मंदिर भारत के झारखंड राज्य के देवघर पर स्थित है,
सिद्ध पीठ होने की वजह से यहां भक्तों की मुरादे जल्दी पूरी होती हैं
इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को “कामना लिंग” कहते हैं।
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग(Baidyanath Jyotirlinga) भी है जो नौवां प्रमुख ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है।
भारत में बैद्यनाथ नाम से तीन मंदिर स्थित है एक झारखंड के देवगढ़ जिले में स्थित है,
दूसरा महाराष्ट्र स्थित है, और
तीसरा हिमांचल प्रदेश में स्थित है, वैद्यनाथ मंदिर विवादित बना हुआ है
शिव महापुराण के अनुसार वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग(Baidyanath Jyotirlinga)की स्थापना महादेव के परम भक्त महा पराक्रमी राक्षस राज रावण ने की थी।
राक्षस राज रावण महादेव को कैलाश पर्वत से लंका ले जाना चाहता था
ताकि वह अपना सारा जीवन भगवान की आराधना में बिता सकें।
वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग(Baidyanath Jyotirlinga) का महत्व
देवघर को देवी देवताओं का घर कहा जाता है
यहां हर साल सावन में बहुत बड़ा श्रावणी मेला लगता है
और यहां लाखों शिवभक्तों एवं काँवरियों की भीड़ सुल्तानगंज से गंगा जल भर कर 108 किलोमीटर पैदल यात्रा करके भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं।
बैधनाथ धाम की यात्रा श्रावण माह से शुरु होकर भाद्रमास तक लगातार चलती रहती है
बाबावैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग(Baidyanath Jyotirlinga) मंदिर के बगल में एक विशाल तालाब है
जिसके आस पास बहुत सारे मंदिर बने हुए हैं
और यहां शिव मंदिर माता पार्वती के मंदिर से जुड़ा हुआ है पुराणों के अनुसार कहा जाता है।
कि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के बाद वासुकी नाथ शिव मंदिर दर्शन किए जाते हैं जोकि देवघर से 42 किलोमीटर एक छोटे से गांव में स्थित है।
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (Baidyanath Jyotirlinga) कथा
राक्षस राज रावण एक समय कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की भक्ति भाव से आराधना कर रहा था,
बहुत दिनों तक आराधना करने पर जब भगवान शिव नहीं प्रसन्न हुए
तब पुनः वह दूसरी विधि से तब साधना करने लगा हिमालय पर्वत से दक्षिण की ओर सघन वृक्षों से भरे जंगल में पृथ्वी को खोदकर एक गड्ढा तैयार किया
उस गड्ढे में अग्नि की आस्थापना करके हवन प्रारंभ किया रावण ने कई तरीकों से अत्यंत कठिन तपस्या की इतने कठोर तपस्या से भी भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए कठिन तपस्या से जब रावण को सिद्धि नहीं प्राप्त हुई तब रावण अपना एक-एक सिर काटकर शिव की पूजा करने लगा।
शास्त्र विधि सेवा पूजा करता और उसके बाद अपना एक सिर काटकर भगवान को समर्पित करता इस प्रकार उसने 9 मस्तक अपना काट डाले
जब वह अपना अंतिम मस्तक काटने ही वाला था तभी भगवान शिव उस पर प्रसन्न होकर प्रकट हुए और साक्षात प्रकट होते ही रावण के पूर्ववत मस्तक जोड़ दिए।
भगवान ने राक्षस राज रावण को बाला पर पराक्रम प्रदान किया
भगवान शिव का प्रसाद करके नतमस्तक होकर विनम्र भाव से हाथ जोड़कर कहां-‘देवेश्वर!
आप मुझ पर प्रसन्न होइए,
मैं आपको लंका ले जाना चाहता हूं मेरी मनोरथ सिद्ध कीजिए’।
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग कथा
रावण के इस कथन को सुनकर भगवान शिव असमंजस में पड़ गए
और कहां-राक्षस राज तुम मेरे इस उत्तम लिंग को भक्ति भाव पूर्वक अपनी राजधानी ले जाओ,
किंतु ध्यान रखना रास्ते में इसे यदि पृथ्वी पर रखोगे तो यह वही आंचल हो जाएगा
भगवान शिव द्वारा ऐसा कहने पर राक्षस राज रावण ने स्वीकार कर लिया
और उस शिवलिंग को लेकर अपनी राजनीति और चल दिया।
भगवान शिव की माया शक्ति के प्रभाव से रास्ते में जाते समय उसे मुत्रोंत्सर्ग की प्रबल इच्छा हुई तब शिवलिंग को एक ग्वाल के हाथ में पकड़ा कर स्वयं लघुशंका (पेशाब) करने चला गया, एक मुहूर्त बीतने के बाद शिवलिंग के भार से पीड़ित उस ग्वाल ने शिवलिंग पृथ्वी पर रख दिया
पृथ्वी पर शिवलिंग रखते ही वह वही स्थिर हो गया।
लोक कल्याण एवं प्रकृति कल्याण की भावना से शिवलिंग वही स्थिर हो गया तब रावण निराश होकर अपनी राजधानी चल दिया,
इंद्र आदि देवताओं और ऋषियों ने लिंग के बारे में सुनकर उन लोगों ने अति प्रसन्नता के साथ शास्त्र विधि से शिवलिंग की पूजा और स्थापना की।
इस प्रकार रावण द्वारा किए जाने वाले तपस्या के फलस्वरूप श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग(Baidyanath Jyotirlinga) का प्रादुर्भाव हुआ
जिसे देवताओं ने स्वयं प्रतिष्ठित कर पूजन किया,
जो मनुष्य श्रद्धा पूर्वक भगवान श्री वैद्यनाथ जी का अभिषेक करता है।
उसका शारीरिक और मानसिक रोग अति शीघ्र नष्ट हो जाता है
इसलिए श्री वैद्यनाथ धाम में लाखों की संख्या में दर्शनार्थियों की भीड़ दिखाई देती है।
No comments yet