धनतेरस (Dhanteras)की कथा
कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस (Dhanteras)का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है।
धनवंतरी के अलावा इस दिन,देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा धनतेरस (Dhanteras)पर करने की मान्यता है।
धनतेरस (Dhanteras) का यह त्योहार मृत्यु के देवता यमराज से अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होने की प्रार्थना का दिन है।
जिस तरह भगवान गणेश सिद्धि-बुद्धि के स्वामी हैं, उसी तरह कुबेर धन के स्वामी हैं। इनकी पूजा भगवान शंकर के साथ भी होती है।
महालक्ष्मी के साथ तो इनकी विशेष पूजा की जाती है।
उत्तर दिशा के अधिपति भी कुबेर ही हैं, दस दिक्पालों में भी इनकी गिनती होती है।
इसके अतिरिक्त आयुर्वेद के प्रणेता भगवान धन्वन्तरि का जन्म भी इसी दिन होने के कारण वैद्य समाज में धनतेरस (Dhanteras)को धन्वन्तरि जयंती के रूप में मनाया जाता है।

कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो।
मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं,तुम उधर मत आना।
विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतुहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।
लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े
लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं।
कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे।
सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं।
आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।
धनतेरस की कथा
उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था,पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी।
अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो।
ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए।
तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।
एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई
इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो,फिर रसोई बनाना,तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया।
पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न,धन,रत्न,स्वर्ण आदि से भर गया।
लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए।
फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।
विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया।
तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं।
इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके।
धनतेरस की कथा
इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है।
किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।
तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो।
कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना
और शायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना,मैं उस कलश में निवास करूंगी।
किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी।
इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी।
यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं।
अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया।
उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।
धनतेरस (Dhanteras)मंत्र
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः ।।
धनतेरस (Dhanteras) पर यमराज को करें दीपदान
इस दिन रात में यमराज से असामयिक मृत्यु न होने की कामना के साथ घर के मुख्य द्वार की दक्षिण दिशा में घी अथवा तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
इससे धर्मराज प्रसन्न होते हैं और उस घर में किसी भी सदस्य की अकाल मृत्यु नहीं होती है।
घी अथवा तिल के तेल के दीपक में कुछ पैसे भी डाल देने चाहिए।
इस बात का ध्यान रखें कि दीपक की बाती चार मुख वाली हो यानी अलग अलग दिशाओं में हो और मुख्य द्वार के दक्षिण दिशा में हो।
धनतेरस (Dhanteras) पर क्या-क्या खरीदें?
मां लक्ष्मी व गणेश की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर में लाना धन, सफलता व उन्नति को बढ़ाने वाला माना गया है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन में आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि कलश लेकर प्रकट हुए थे,
इसलिए इस दिन विशेष रूप से बर्तनों की खरीदारी की जाती है।
कहा जाता है कि इस दिन बर्तन या चांदी खरीदने से इनमें तेरह गुणा वृद्धि हो जाती है।
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