धनतेरस की कथा || Dhanteras ki katha - Gyan.Gurucool
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धनतेरस (Dhanteras)की कथा

कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस (Dhanteras)का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है।
धनवंतरी के अलावा इस दिन,देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा धनतेरस (Dhanteras)पर करने की मान्यता है।

धनतेरस (Dhanteras) का यह त्योहार मृत्यु के देवता यमराज से अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होने की प्रार्थना का दिन है।

जिस तरह भगवान गणेश सिद्धि-बुद्धि के स्वामी हैं, उसी तरह कुबेर धन के स्वामी हैं। इनकी पूजा भगवान शंकर के साथ भी होती है।
महालक्ष्मी के साथ तो इनकी विशेष पूजा की जाती है।

उत्तर दिशा के अधिपति भी कुबेर ही हैं, दस दिक्पालों में भी इनकी गिनती होती है।
इसके अतिरिक्त आयुर्वेद के प्रणेता भगवान धन्वन्तरि का जन्म भी इसी दिन होने के कारण वैद्य समाज में धनतेरस (Dhanteras)को धन्वन्तरि जयंती के रूप में मनाया जाता है।

Dhanteras

धनतेरस (Dhanteras) पर यमराज को करें दीपदान

इस दिन रात में यमराज से असामयिक मृत्यु न होने की कामना के साथ घर के मुख्य द्वार की दक्षिण दिशा में घी अथवा तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
इससे धर्मराज प्रसन्न होते हैं और उस घर में किसी भी सदस्य की अकाल मृत्यु नहीं होती है।
घी अथवा तिल के तेल के दीपक में कुछ पैसे भी डाल देने चाहिए।
इस बात का ध्यान रखें कि दीपक की बाती चार मुख वाली हो यानी अलग अलग दिशाओं में हो और मुख्य द्वार के दक्षिण दिशा में हो।

धनतेरस (Dhanteras) पर क्या-क्या खरीदें? 

मां लक्ष्मी व गणेश की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर में लाना धन, सफलता व उन्नति को बढ़ाने वाला माना गया है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन में आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि कलश लेकर प्रकट हुए थे,
इसलिए इस दिन विशेष रूप से बर्तनों की खरीदारी की जाती है।
कहा जाता है कि इस दिन बर्तन या चांदी खरीदने से इनमें तेरह गुणा वृद्धि हो जाती है।

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