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ध्रुवतारा कथा अनोखी कथा (Dhruv tara)
Dhruv tara Katha ka mehtav)\ध्रुव तारा कथा का महत्व
भगवान विष्णु के कई अनन्य भक्त हुए, जिनमें (dhruv tara)ध्रुव का नाम सबसे पहले आता है.
आसमान में उत्तर दिशा में चमकते हुए तारे को (dhruv tara)ध्रुवतारा कहते हैं.
ध्रुव तारे का संबंध भगवान विष्णु के सबसे प्रिय भक्त ध्रुव से माना गया है. भगवान विष्णु और ध्रुव की कथा बहुत प्रसिद्ध कही जाती है.
पंडित इंद्रमणि घनस्याल से जानते हैं |
हमरोज़ रात आसमान में जगमगाते असंख्य तारों को देखते हैं.
उनमें से उत्तर दिशा में दिखाई देने वाला सबसे चमकदार तारा हम सबका ध्यान आकर्षित करता है
. सदा स्थिर नज़र आने वाला वह तारा है – ध्रुव तारा है|
(Introduction to Prince Dhruvtara)\राजकुमार ध्रुव का परिचय
विष्णु पुराण के अनुसार, राजा उत्तानपाद के दो रानियां थीं. बड़ी रानी का नाम सुनीति था
और छोटी रानी का नाम सुरुचि था. सुनीति ने ध्रुव को जन्म दिया तथा सुरुचि ने उत्तम को जन्म दिया था.
उत्तानपाद की पहली पत्नी रानी सुनीति थी. लेकिन राजा उत्तानपाद को सुरुचि व उसका पुत्र उत्तम ज्यादा प्रिय थे.
राजा उत्तानपाद ने एक दिन ध्रुव को अपनी गोद में बैठाकर रखा था.
तभी रानी सुरुचि वहां आई और ध्रुव को राजा की गोद में बैठा देखकर गुस्से से (Dhruvtara)ध्रुव को राजा की गोद से उतारा और अपने पुत्र को बैठा दिया.
इसके बाद वह बोली कि जिसे मैंने जन्म दिया है, वही राज सिंहासन का उत्तराधिकारी बनेगा.
यदि तुम्हें राजगद्दी चाहिए तो भगवान विष्णु की भक्ति करो
और उनकी कृपा से मेरी कोख से जन्म लो, तभी तुम्हें सिंहासन प्राप्त होगा|
ध्रुव का कोमल हृदय हुआ आहत
ये सब सुनकर(Dhruvtara) ध्रुव रोते हुए अपनी मां सुनीति के पास गया और सारी बात बताई.
तब रानी सुनीति ने कहा कि तुम्हारे पिता को तुम्हारी सौतेली मां और उसका पुत्र अधिक प्रिय है.
अब हमारा सहारा केवल भगवान विष्णु ही हैं. अपनी दोनों मां की बात से ध्रुव का मन बहुत आहत हुआ|
नारद मुनि द्वारा ध्रुव को मिला मंत्र
एक दिन ध्रुव भगवान विष्णु की तपस्या करने के लिए घर छोड़कर जा रहे थे.
तभी रास्ते में उन्हें नारद मुनि मिले और नारद मुनि ने (Dhruvtara)ध्रुव को ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ का मंत्र दिया.
ध्रुव यमुना नदी के तट पर जाकर इस मंत्र का जाप करने लगे. तपस्या के समय ध्रुव की आयु मात्र पांच वर्ष की थी|
भगवान विष्णु ने दिए दर्शन
(Dhruvtara)ध्रुव की अभिलाषा जानकर भगवान विष्णु बोले, “वत्स, तुम्हारा निःस्वार्थ भक्ति भाव देख मैं तुम्हें अपनी गोद में स्थान देता हूँ. यह ब्रह्माण्ड मेरा अंश है और आकाश मेरी गोद. तुम मेरी गोद आकाश में ध्रुव तारे के रूप में स्थापित होगे. तुम्हारे प्रकाश से पूरा ब्रह्माण्ड जगमगायेगा. तुम्हारा स्थान सप्तऋषियों से भी ऊपर होगा. वे तुम्हारी परिक्रमा करेंगे|
जब तक ब्रह्माण्ड है, तुम्हारा स्थान निश्चित है. तुम्हारे स्थान से तुम्हें कोई डिगा नहीं पायेगा. किंतु वर्तमान में तुम्हें अपना राज्य संभालना है. इसलिए तुम घर लौट जाओ. छत्तीस हजार वर्ष तक पृथ्वी पर राजकर तुम मेरी गोद में आओगे.”
इतना कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए. ध्रुव वापस घर लौट गया. कुछ वर्ष उपरांत राजा उत्तानपाद अपना राजपाट ध्रुव को सौंपकर वन चले गए. भगवान विष्णु के वरदान अनुसार पृथ्वी पर छत्तीस हजार वर्ष तक धर्मपूर्वक राज करने के उपरांत ध्रुव आकाश में(Dhruvtara) ध्रुव तारा बनकर सदा के लिए अमर हो गया.
ध्रुव ने 6 महीने की कठोर तपस्या की. तब भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और उन्हें अपनी गोद में बिठाया. भगवान ने कहा कि तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी.
भगवान विष्णु ने कहा कि मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर तुम्हें वह लोक प्रदान करता हूं, जिसके चारों ओर ज्योतिष चक्कर घूमता है और जिसके आधार पर सब ग्रह-नक्षत्र घूमते हैं. इसी तरह ध्रुव भगवान विष्णु के प्रिय भक्त कहलाए और सप्त ऋषि मंडल में (Dhruvtara)ध्रुव तारे के नाम से जाने जाते हैं|
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