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गोवत्स द्वादशी (govatsa dwadashi)
(Govatsa dwadashi)गोवत्स द्वादशी के दिन गाय माता एवं उनके बछड़े की पूजा की जाती है।
यह त्यौहार एकादशी के एक दिन के बाद (govatsa dwadashi)द्वादशी को तथा धनतेरस से एक दिन पहले मनाया जाता है।
गोवत्स द्वादशी की पूजा गोधूलि बेला में की जाती है। जो लोग गोवत्स द्वादशी का पालन करते हैं,
वे दिन में किसी भी गेहूं और दूध के उत्पादों को खाने से परहेज करते हैं।
गोवत्स द्वादशी (govatsa dwadashi)को नंदिनी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में नंदिनी गाय को दिव्य माना गया है।
(govatsa dwadashi) गोवत्स द्वादशी पूजा महिलाओं द्वारा पुत्र की मंगल-कामना के लिए की जाती है।
यह पर्व एक वर्ष में दो बार मनाया जाता है।
पहला भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को तो दूसरा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कही गई है।
गौमाता के दर्शन से ही बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी ज्यादा लाभ प्राप्त होता है।
(Nandini Vrat Katha) \ नंदिनी व्रत कथा
माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद इसी दिन गौमाता के दर्शन और पूजन किया था।
माना जाता है कि(govatsa dwadashi) गौमाता को एक ग्रास खिलाने से ही सभी देवी-देवताओं तक यह अपने आप ही पहुंच जाता है।
(Govats Dwadashi Method)\गोवत्स द्वादशी विधि
इस दिन महिलाएं अपने बेटे की दीर्घायु के लिए और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं।
इस दिन विशेषकर परिवार में बाजरे की रोटी बनाई जाती है।
साथ ही अंकुरित अनाज की सब्जी भी बनाई जाती है।
इस दिन भैंस या बकरी का दूध इस्तेमाल किया जाता है। शास्त्रों में इसका माहात्म्य बताया गया है।
इस दिन अगर महिलाएं गौमाता की पूजा करती हैं और रोटी समेत हरा चारा खिलाती हैं
तो उनके घर में मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है
यह द्वादशी हर वर्ष कार्तिक महीने की कृष्णपक्ष की द्वादशी(govatsa dwadashi) को आती है
दिपावली जैसे महापर्व के ठीक चार दिन पहले (govatsa dwadashi)गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है।
इस दिन गाया व बछड़ा दोनो की पूजा करने का विधान है उन्हे पूजने के बाद गेहूँ से बने पदार्थ खाने को देना चाहिए।
इस दिन गाय का दूध, व गेहूँ के बने पदार्थ (भोजन) का प्रयोग वर्जित है। कटे फल का सेवन नही करना चाहिए
तथा पूजा करने के बाद गोवत्स द्वादशी व्रत की कथा सुनकर ब्रह्मणों को फल देना चाहिए।
आप भी गोवत्स द्वादशी का व्रत (Govatsa Dwadashi Vrat) रखते है तो हमारे द्वारा बताई लिखी गई पूजा विधि, शुभ मुहूर्त एवं व्रत कथा पढ़कर अपन व्रत पूर्ण करें।
इसका उल्लेख शास्त्रो में मिला है मान्यताओं के अनुसार इस द्वादशी वाले दिन माता यशोदा ने गाय माता व बछड़े की पूजा की थी।
और यह व्रत प्रतिवर्ष दीपावली का त्यौहार (Deepawali Festival) के 4 दिन पहले किया जाता है।
यह द्वादशी भगवान विष्णु (Lord Vishnu ji) जी को समर्पित है इसलिए जो कोई व्यक्ति श्रद्धा भाव से यह व्रत करता है
भगवान उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करता है।
हमारे यहा पर (govatsa dwadashi)गोवत्स द्वादशी व्रत को गौ बारस (Go Baras Vrat) व्रत के नाम से जाना जाता है।

(Govatsa Dwadashi fast worship method)\गोवत्स द्वादशी व्रत पूजा विधि
- इस व्रत वाले दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर साफ वस्त्र धारण करें,
उसके बाद भगवान सूर्य को जल का अघ्र्य दे और पीपल के वृक्ष व तुलसी वृक्ष में भी पानी अवश्य चढ़ाए। - उसके बाद आपको मान्यताओं के अनुसार गाय माता व उसके बछड़े की पूजा विधिवत रूप से करें और इस व्रत का संकल्प करें।
- सबसे पहले आपको गाय माता व उसके बछड़े को पुष्प माला पहनाये उसके बाद तिलक आदि करके पूजा करें।
- पूजा करते समय इस मंत्र का धारण करें-
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:।।
- पूजा करने के बाद गाय माता को व बछ़ड़े को पकवान के रूप में भोग लगाऐं। और इस मंत्र का जाप करें
सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थ्ति। सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस।।
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते। मातर्ममाभिलाषिंत सफलं कुरू नन्दिनी।।
- इतना करने के बाद व्रत रखने वाले सभी भक्तों को गोवत्स द्वादशी व्रत कथा (Govatsa Dwadashi Vrat katha ) सुने, और अपना व्रत पूर्ण करें।
- इसके बाद गोवत्स द्वादशी व्रत का पारण करें।
(Govatsa Dwadashi fast story)\ गोवत्स द्वादशी व्रत की कथा
प्राचीन समय में सुवर्णसुर नगर में देवदानी नामक राजा का राज था।
जिसके दो रानिया सीता और गीता थी।
तथा उस राजा ने एक बैंस और एक बछ़डा भी पाल रखा था।
राजा की पहली रानी सीता भैस की देखभाल करती थी।
तथा दूसरी पत्नी गीता उस बछड़े का देखभाल करती थी।
तथा वह उस बछडे पर अपने पुत्र समान रस बरसाती (प्यार करती) थी।
एक दिन भैंस ने चुगली कर दी कि गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है। ऐसा सुनकर सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहूँ के डेर में छुपा दिया।
रात्रि में जब राजा भोजन करने बैठा तब मॉस की वर्षा होने लगी। राजा के महल के अन्दर तथा बाहर चारो ओर रक्त और मॉस दिखाई देना लगा।
और जिस थाली में भोजन परोसा गया था उस थाली में मल- मूत्र हो गया।
यह देखकर राजा आश्चर्य में पड़ गया और कुछ भी समझ नही आ रहा था,
की यह सब क्या हो रहा है।
तथी अचानक आकाशवाणी हुई कि हे राजन तुम्हारी रानी सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहॅू के डेर में छुपा दिया है।
और कल गोवत्स द्वादशी है। तुम इस भैस को राज्य से बाहर करके गोवत्स पूजा करो और इस व्रत को पूरे नियामो के अनुसार पूरी श्रद्धा से करो।
यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारे इस तप से वह बछड़ा पुन: जीवित हो जाऐगा।
इसके बाद दूसरे दिन राजा ने (govatas dwadashi)गोवत्स पूजा पूरे विधि-विधान से की तथा पूरी श्रद्धा के अनुसार पूजा की।
और अपने मन ही मन में उस बछडे को याद किया। जैसे ही राजा ने बछड़े को याद किया तो वह बछड़ा गेहू के ढेर से निकलकर बाहर आ गया।
यह देखकर राजा प्रसन्न हो गया। और राजा ने अपने पूरे राज्य में आदेश दिया की नगर के सभी निवासी(govatas dwadashi) गोवत्स द्वादशी व्रत का पालन करेगे।
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