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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)की कथा
भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)है।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद-दौलताबाद से 12 किलोमीटर दूर वेरुलठ गांव के निकट स्थापित है।
इस मन्दिर की दूरी दौलताबाद रेलवे स्टेशन से लगभग 18 किलोमीटर पड़ती है।
महादेव के इस ज्योर्तिलिंग को घृष्णेश्वर नाम से पुकारा जाता है|
हालाकि कुछ लोग इस मन्दिर को घुश्मेश्वर नाम से भी पुकारते हैं।
पौराणिक कथा और इतिहास से पता चलता है, कि इस मंदिर को देवी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा पुनःनिर्माण व जिर्णोद्धार करवाया था।
इसके महज आधा किलोमीटर की दूरी पर एलोरा की विश्व प्रसिद्ध गुफाए भी स्थित है।
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग को अंतिम ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
महादेव के इस घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga) के अनेकों नाम है
जैसे, घुश्मेश्वर, घुश्मेश्रवर ,घृष्णेश्वर भी कहा जाता है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga) के नजदीक एक शिवालय नामक सरोवर बनाया गया है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)की कथा
एक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ठ ब्राह्मण सुधर्मा दक्षिण देश में देव गिरी पर्वत के पास रहता था।
इनकी पत्नी का नाम सुदेहा था। यह दोनों पति पत्नी एक दूसरे से अत्यंत प्रेम करते थे।
इनकी कोई भी पुत्र या पुत्री नहीं थे। सुदेहा गर्भवती नहीं हो सकती थी फिर भी संतान प्राप्ति की इच्छुक थी।
सुदेहा ने अपने पति सुधर्मा से कहा कि वह उसकी छोटी बहन से दूसरा विवाह कर ले सुधर्मा ने यह बात मानने से इनकार कर दिया।
किंतु अपनी पत्नी सुदेहा के जिद करने पर सुधर्मा को झुकना ही पड़ा।
सुधर्मा अपनी पत्नी की छोटी बहन घुश्मा से विवाह करके उसे घर ले आए।
घुश्मा घुश्मा एकदक पवित्र विचारों वाली सदाचारिणी और दयालु स्त्री थी।
वह महादेव जी की परम भक्त तथा श्रद्धा पूर्वक प्रत्येक पहर शिव के ध्यान में लीन रहती थी। वह प्रतिदिन 101 पार्थिव शिवलिंग बनाती थी।
वह दिनभर श्रद्धा पूर्वक शिवलिंग का विधिवत पूजन व ध्यान किया करती।
शिव जी की कृपा ऐसी रही कि वह कुछ समय काल बीतने के पश्चात वह एक बालक को जन्म देती है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
दोनों बहनें बेहद प्यार से रहनें लगी।
किंतु कुछ समय के बाद सुदेहा के मन में गलत विचार आने लगते है।
वह सोचने लगी इस घर में सब कुछ तो घुश्मा का ही है, मेरा कुछ भी नहीं है।
इस विचार पर सुदेहा ने इतना चिंतन किया कि यह बात उसके मन में स्थिर हो गई थी।
वह यह सोच रही थी, की संतान भी घुश्मा का है।
उसके पति पर भी अब उसका नहीं घुश्मा का हक जमा है।
घुश्मा का पुत्र भी बड़ा हो गया है। वह विवाह योग्य हो गया है।
यह सब विचार के साथ एक बार सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र को रात में सोते समय हत्या करने का निर्णय किया
तथा वह उसे मृत्यु देने के इस षड्यंत्र बनाने लगी।
उसकी हत्या के बाद सुदेहा ने उसके शव को तालाब में डाल दिया।
जिस तालाब में उसने उसके पुत्र को फेंका था उसी तालाब में घुश्मा प्रतिदिन शिवलिंग को प्रवाहित करती थी।
जब सुबह हुई तो पूरे घर में कोहराम मच गया। घुश्मा और उसकी बहू दुख पूर्वक विलाप करने लगी।
घुश्मा ने शिव में अपनी आस्था नहीं छोड़ी। वह प्रतिदिन की तरह आज भी शिव जी की श्रद्धा पूर्वक पूजा विधि संपूर्ण करके अपनी नित्य क्रिया करने गई।
जब वह महादेव के शिवलिंग को प्रवाहित तलाब पर गई, तो उसका बेटा तालाब के अंदर से निकल कर आता हुआ दिखाई पड़ा।
जब वह तालाब से बाहर आया तो प्रतिदिन कि तरह वह घुश्मा के चरणों पर गिर गया।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
यह देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था। कि वह कहीं से घूम कर वापस आ रहा है।
तभी वहां शिव जी प्रकट हुए।
उन्होंने घुश्मा को वर मांगने का वरदान दिया।
शिवजी सुदेहा के इस पाप से अत्यंत क्रोधित थे।
वह इतने क्रोध में थे, कि वे अपने त्रिशूल से सुदेहा का सर काटना चाहते थे।
किंतु उसकी छोटी बहन ने शिवजी से नम्रता पूर्वक हाथ जोड़कर निवेदन किया,
कि वह उनकी बहन को कोई दंड न दें।
उन्होंने जो भी किया है। वह पाप है, किंतु अब शिव जी की दया से ही उसे अपना पुत्र पुनः प्राप्त हुआ है।
शिव जी ने घुश्मा की इस विनती को स्वीकार किया।
तथा घुश्मा के कथन अनुसार सामाजिक व जनकल्याण के लिए उसी स्थान पर हमेशा के लिए निवास करने की प्रार्थना को स्वीकार करते हुये उसी स्थान पर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)के रूप में स्थापित हुये।
ज्योतिर्लिंग मन्दिर का नाम महादेव की परम व अनन्य भक्त घुष्मा के नाम पर पड़ा।
जिसे भारत के ज्योतिर्लिंग का अंतिम घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga)के नाम से जाना जाता है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga )का महत्व
मान्यता है जैसे घुश्मा की अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने सन्तान सुख दिया
और उनके पुत्र की रक्षा की उसी प्रकार श्रद्धापूर्वक दर्शन करने मात्र से यहां निसन्तान जोड़ों की सन्तान प्राप्ति की मनोकामना शीघ्र ही पूर्ण हो जाती है।
इस घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga) में स्थित शिवालय सरोवर स्थित है सूर्योदय के समय दर्शन अवश्य करें यह वहीं सरोवर है
जहां घुश्मा प्रतिदिन 101 शिवलिंगों को पूजन के पश्चात प्रवाहित करती थी और यहीं से उसे अपने पुत्र की प्राप्ति भी हुई थी।
कहा जाता है, कि इस शिवलिंग की स्थापना घुश्मा के शिवजी के प्रति श्रद्धा तथा ध्यान पूर्वक पूजन या उनकी परम भक्त होने के कारण इस स्थान पर शिव जी की ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई है।
जिससे यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
यह अंतिम ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है तथा शिव जी का बारवां ज्योतिर्लिंग है।
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