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गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat)हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत हर महीने में दो बार किया जाता है। इस व्रत को करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। प्रदोष व्रत को पवित्र उपवास का दिन माना जाता है। गुरु प्रदोष व्रत हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक चंद्र पखवाड़े ‘त्रयोदशी’ पर पड़ता है। यदि गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) गुरुवार के दिन पड़ता है तो इस व्रत को ‘गुरु प्रदोष व्रत’ कहा जाता है। गुरु प्रदोष व्रत में देवी पार्वती और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है।
गुरु प्रदोष व्रत क्या है
यदि गुरु प्रदोष व्रत गुरुवार के दिन पड़ता है तो इसे गुरु प्रदोष व्रतकहते हैं।
गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) का महत्व
गुरु प्रदोष व्रत का महत्व ‘शिव पुराण’ और अन्य हिंदू शास्त्रों में भी बताया गया है। गुरु प्रदोष व्रत भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
इंद्र ने गुरु प्रदोष का व्रत रखकर राक्षस वृत्तासुर पर विजय प्राप्त की थी।
गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) कथा
एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना के बीच युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य सेना को पराजित कर नष्ट कर दिया। यह देखकर वृत्तासुर बहुत क्रोधित हुआ और स्वयं युद्ध में सम्मिलित हो गया। उन्होंने राक्षसी माया से विकराल रूप धारण किया। सभी देवता भयभीत होकर गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंचे। बृहस्पति महाराज ने कहा- सबसे पहले मुझे वृत्तासुर का वास्तविक रूप जानना चाहिए।
वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और परिश्रमी है। उन्होंने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया।
पूर्व जन्म में वृत्तासुर नाम का एक राजा था चित्ररथ। एक बार वे अपने विमान से कैलाश पर्वत पर गए। वहां माता पार्वती को शिव के वाम अंग में विराजमान देखकर उन्होंने उपहास के साथ कहा- ‘हे प्रभु! मोह माया में फँसे रहने के कारण हम स्त्री के वश में रहते हैं, परन्तु देवलोक में यह दृष्टिगोचर नहीं होता था कि स्त्री को गले लगाकर सभा में बैठाया जाय।
चित्ररथ का यह वचन सुनकर सर्वव्यापी शिवशंकर हंस पड़े और बोले- ‘हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण अलग है। मैंने कालकूट महाविषम पी लिया है, फिर भी तुम आम आदमी की तरह मेरा उपहास करते हो!
गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat)
किन्तु चित्ररथ के ऐसे वचन सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो उठीं- ‘हे दुष्ट! आपने मेरा तथा सर्वव्यापक महेश्वर का भी उपहास किया है, अत: मैं आपको शाप देता हूँ कि आपको राक्षस की प्राप्ति हो। माता पार्वती के श्राप के कारण ‘चित्ररथ’ राक्षस को मिल गया और त्वष्टा नामक ऋषि की उत्कृष्ट तपस्या से उत्पन्न वृत्तासुर बन गया।
गुरुदेव बृहस्पति ने आगे कहा- वृत्तासुर बचपन से ही शिवभक्त रहा है, अत: हे इन्द्र! आप बृहस्पति प्रदोष का व्रत करके भगवान शंकर को प्रसन्न करें।
गुरुदेव की आज्ञा का पालन करते हुए देवराज ने बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत की महिमा से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति हो गई।
गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) तिथि 2023 में निम्नलिखित हैं:-
त्रयोदशी तिथि जनवरी में
माघ, कृष्ण त्रयोदशी, गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat)
गुरुवार, 19 जनवरी 2023
19 जनवरी 2023 दोपहर 01:18 बजे से 20 जनवरी 2023 को सुबह 09:59 बजे तक
त्रयोदशी तिथि फरवरी में
माघ, शुक्ल त्रयोदशी, गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat)
गुरुवार, 02 फरवरी 2023
02 फरवरी 2023 को शाम 04:26 बजे से – 03 फरवरी 2023 को शाम 06:57 बजे से.
त्रयोदशी तिथि जून में
ज्येष्ठ, शुक्ल त्रयोदशी, गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat)
गुरुवार, 01 जून 2023
01 जून 2023 दोपहर 01:39 बजे – 02 जून 2023 दोपहर 12:48 बजे
आषाढ़, कृष्ण त्रयोदशी, गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat)
गुरुवार, 15 जून 2023
15 जून 2023 सुबह 08:32 बजे से 16 जून 2023 सुबह 09:39 बजे तक
त्रयोदशी तिथि अक्टूबर में
अश्विन, शुक्ल त्रयोदशी, गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat)
गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023
26 अक्टूबर 2023 सुबह 09:44 बजे से 27 अक्टूबर 2023 सुबह 06:56 बजे तक
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