Hiranyakashyap Ki Katha: Divine & Mythical Stories | हिरण्यकश्यप की कथा - Gyan.Gurucool
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हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap)की कथा 

Hiranyakashyap Ki Katha

परिचय

हिरण्यकशिपु( Hiranyakashyap) के माता-पिता महर्षि कश्यप और दिति थे। महर्षि कश्यप की कई पत्नियां थीं, जिनमें से एक थीं दिति।
उनके गर्भ से दैत्य का जन्म हुआ।हिरण्यकश्यप का विवाह कयाधु नाम की महिला से हुआ था,
जिससे उसे प्रह्लाद नाम का एक पुत्र हुआ। यही पुत्र उनकी मृत्यु का कारण बना।

 

भगवान ब्रह्मा का हिरण्यकश्यप को वरदान

लगभग सौ वर्षों तक तपस्या करने के बाद भगवान ब्रह्मा मिला हिरण्यकश्यप  के सामने प्रकट हुए।
उसने वरदान मांगा कि वह भगवान ब्रह्मा द्वारा बनाए गए किसी भी प्राणी से न मरे,
चाहे वह मनुष्य हो या पशु। साथ ही शस्त्र से न तो दिन में न रात में, न भवन के बाहर न भवन के भीतर, न जमीन पर न आकाश में मरना चाहिए।
यह वरदान पाकर वह बहुत शक्तिशाली हो गया।हिरण्यकश्यप ( Hiranyakashyap) की तपस्या से ब्रह्मा देव खुश थे ही,
इसलिए अमरता के एक वरदान के बदले उन्होंने ये सारे वरदान उसे दे दिए।

Hiranyakashyap Ki Katha

Hiranyakashyap Ki Katha

हिरण्यकश्यप ( Hiranyakashyap) का अत्याचार और प्रह्लाद

अमरता का वरदान  पाकर हिरण्यकश्यप  हर जगह तबाही मचाना शुरू कर दिया।
उससे मनुष्य ही नहीं, देवता भी परेशान रहने लगे।
वह अपनी शक्ति से दुर्बलों को सताने लगा।

हिरण्यकश्यप  ( Hiranyakashyap)से बचने के लिए लोगों को हिरण्यकश्यप की पूजा करनी पड़ती थी।
भगवान की जगह जो भी हिरण्यकश्यप ( Hiranyakashyap)की पूजा करता वह उसे छाेड़ देता
और जो उसे भगवान मानने से मना करता, उसे मरवा देता या अन्य सजा देता।

समय के साथ राक्षस हिरण्यकश्यप ( Hiranyakashyap)का आंतक बढ़ता गया।
कुछ वक्त बीतने पर हिरण्यकश्यप( Hiranyakashyap) के घर विष्णु भगवान के परम भक्त प्रहलाद का जन्म हुआ।
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को कई बार विष्णु भगवान की पूजा करने से मना किया और कहा, “मैं ही भगवान हूं।
तुम मेरी आराधना करो।”

हिरण्यकश्यप ( Hiranyakashyap)

हर बार हिरण्यकश्यप ( Hiranyakashyap) की बात सुनकर प्रहलाद कहते, “मेरे सिर्फ एक ही भगवान हैं
और वो भगवान विष्णु हैं। प्रहलाद की बातें सुनकर हिरण्यकश्यप  ने उन्हें मारने की कई कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया।
भगवान विष्णु अपनी शक्ति से हर बार हिरण्यकश्यप( Hiranyakashyap) के सारे प्रयास विफल कर देते थे।

एक दिन हिरण्यकश्यप( Hiranyakashyap)  के घर उसकी बहन होलिका आई। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था।
उसके पास एक कंबल था, जिसे लपेटकर यदि वह आग में चली जाए, तो आग उसे नहीं जला सकती थी।
हिरण्यकश्यप को अपने बेटे से परेशान देखकर होलिका ने कहा, “भैया, मैं अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर आग में बैठ जाऊंगी,
जिससे वह जल जाएगा और आपकी परेशानी खत्म हो जाएगी।”

हिरण्यकश्यप  ने इस योजना के लिए हामी भर दी। उसके बाद होलिका अपनी गोद में प्रहलाद को बैठाकर आग पर बैठ गई।
उसी वक्त भगवान की कृपा से हाेलिका का कम्बल प्रहलाद के ऊपर आ गया
और होलिका जलकर खाक हो गई। प्रहलाद एक बार फिर प्रभु विष्णु की कृपा से बच गए।

आग में जिस दिन होलिका जलकर भस्म हो गई थी, उसी दिन को आज तक लोग होलिका दहन के नाम से जानते हैं।
इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखते हुए खुशी में होलिका दहन के अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है।

हिरणकश्यप ( Hiranyakashyap) का वध

Hiranyakashya

Hiranyakashya

भगवान विष्णु वैकुंठ में बैठे अपने भक्त प्रह्लाद पर यह सब अत्याचार होते हुए देख रहे थे तथा धीरे-धीरे उनके क्रोध का घड़ा भरता जा रहा था।
एक दिन हिरण्यकश्यप   प्रह्लाद से विष्णु के होने का प्रमाण मांग रहा था। तब प्रह्लाद ने कहा कि वे तो कण-कण में हैं।
इस पर हिरण्यकश्यप ने अपने भवन के एक स्तंभ की ओर ईशारा करते हुए कहा कि क्या वे इसमें भी हैं? तब प्रह्लाद ने इस पर हां में उत्तर दिया।

यह सुनकर हिरण्यकश्यप  ने क्रोध में वह स्तंभ तोड़ डाला। जैसे ही वह स्तंभ टूटा उसमें से भगवान विष्णु का अत्यंत क्रोधित रूप नरसिंह अवतार में प्रकट हुआ
जिसका आधा शरीर सिंह का तथा बाकि का आधा शरीर मनुष्य का था।

उस नरसिंह अवतार ने हिरण्यकश्यप ( Hiranyakashyap) को उसके भवन की चौखट पर ले जाकर, संध्या के समय, अपने गोद में रखकर नाखूनों की सहायता से उसका वध कर दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने उसको मिले वरदान की काट ढूंढ़कर हिरण्यकश्यप का अंत किया तथा उसका उत्तराधिकारी भक्त प्रह्लाद को बनाया।

 

कहानी से सीख:

बुराई के सामने अच्छाई की जीत होती है| इसलिए हमेशा बुराई का रास्ता छोड़कर अच्छाई की राह पर चलना चाहिए।

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