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भादो कृष्ण तृतीया (kajari teej)कजली तीज, पूजन विधि, कजली तीज पर चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि एवं कजली तीज व्रत कथा…..
(kajari teej)कजली तीज का त्यौहार बड़े उल्लास एवँ उमंग के साथ मनाया जाता है।
भाद्रपद मास की तृतीया को 9kajari teej)कजली तीज का त्यौहार मनाया जाता है।
(kajari teej) कजली तीज को बूढ़ी तीज , सातुड़ी तीज भी कहा जाता है।
इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख समृद्धि के लिए पूर्ण विधि विधान से व्रत करती है|
पूरे साल मे(kajari teej) कजली तीज के अलावा भी हरियाली तीज भी मनाई जाती है।
(kajari teej)कजली तीज की कथा के अनुसार इसी दिन भगवान महादेव से विवाह के लिए कठोर तपस्या के फलस्वरूप माँ पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया था।
इस दिन माँ पार्वती व भोलेनाथ की पूजा की जाती है।
इस दिन महिलाएं चने , मूंग की दाल, बेसन ,चावल आदि के सातू बनाती है।
(Kajari Teej worship method)|कजली तीज पूजन विधि
(kajari teej)कजली तीज की पूजन करने के लिए सर्वपथम पूजा के लिए समस्त जरूरी वस्तुओं से एक
थाली सजा ली जावे। उस थाली में मोली,अक्षत,बिंदी , मेहंदी, पुष्प ,रोली,पताशे ,इत्र, दीपक, धूप ,गुड़ ,नीम की टहनी, कच्चा दूध आदि ले लेवे।
अब भगवान गणेश जी को मन मे प्रणाम कर मिट्टी व गोबर से दीवार के किनारे तालाब/ तलाई के जैसी आकृति बनावे।
घी और गुड़ से अच्छी तरह से पाल को बांधा जाता है
और उसके समीप ही नीम की टहनी को अच्छे से रूप देवे।
जो तालाब/ तलाई के जैसी आकृति बनाई गई है। उस तालाब/ तलाई में कच्चा दूध और जल डाल देवे।
इसके पश्चात दीपक प्रज्वलित किया जाता है। एक थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सातु को रख लेवे।
सर्वप्रथम प्रथम पूज्य श्री गणेश जी की पूजन करे ।
उनके मोली, अक्षत, धूप, पुष्प, इत्र व गुड़, पताशे अर्पित करे।
उसके बाद पूजा का प्रारंभ नीमड़ी माता जी को जल व रोली के छींटे देने से करें। फिर अक्षत अर्पण कर।
अनामिका उंगली से नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली की 13 बिंदिया लगाएं।
साथ ही काजल की 13 बिंदी भी लगाएं, काजल की बिंदियां तर्जनी उंगली से लगाएं।
नीमड़ी माता को मोली चढ़ाएं और उसके बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र भी अर्पित करें।
उसके बाद जो भी चीजे आपने माता जी को अर्पित की हैं,
उन सभी चीजो का प्रतिबिंब तालाब/ तलाई के दूध और जल में देखें।
उसके बाद गहनों और साड़ी के पल्ले आदि का प्रतिबिंब भी देखें।
(Method of offering Arghya to the Moon on Kajari Teej)|कजली तीज पर चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि
(kajari teej)कजली तीज पर संध्या को पूजा करने के बाद रात्रि को चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है।
चन्द्र देव का पूजन करते हुए उन्हें रोली, अक्षत और मौली, गुड़ अर्पित करें।
धूप जलाकर उन्हें धूप अर्पित करे।चांदी की अंगूठी और गेंहू के दानों को हाथ में लेकर चंद्र देव को अर्ध्य देते हुए
अपने स्थान पर खड़े होकर चन्द्र देव की परिक्रमा करें ।
(Where is Kajali Teej famous in Rajasthan)|राजस्थान में कजली तीज कहां की प्रसिद्ध है?
राजस्थान ही नहीं पुरे भारत में कजली तीज बूंदी की प्रसिद्ध है अगर केवल तीज की बात करे तो जयपुर और जोधपुर की तीज भी प्रसिद्ध मानी जाती है।
जयपुर की गणगौर भी विश्व प्रसिद्ध है, जयपुर की गणगौर और बूंदी की तीज के त्यौहार देखने के लिए लोग देश-विदेश से यहाँ आते है।
बूंदी को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है।
यहाँ देश-विदेश से लाखो सैलानी आस्था के साथ हर साल आते है।
प्रचलित कजरी तीज की व्रत कथा
ब्राह्मण से कहा आज मेरा तीज माता का व्रत है। कही से चने का सातु लेकर आओ। ब्राह्मण बोला, सातु कहां से लाऊं।
तो ब्राह्मणी ने कहा कि चाहे चोरी करो चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सातु लेकर आओ।
रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकला और साहूकार की दुकान में घुस गया।
उसने वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सातु बना लिया और जाने लगा।
आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर ….चोर चिल्लाने लगे।
मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सातु बना कर ले जा रहा था।
साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सातु के अलावा कुछ नहीं मिला।
उसने ब्राह्मण को सातु, गहने ,रूपये,मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया।
सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे … कजली माता की कृपा सब पर हो।
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