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दस महाविद्याओं में कमला माता (Kamla Mata)को आखिरी व दसवीं महाविद्या के नाम से जाना जाता हैं।
माता सती के 10 रूपों में से माँ कमला आखिरी रूप थी जिन्हें कमला माता के रूप में पूजा जाता हैं।
इन्हें माता लक्ष्मी के समकक्ष माना गया हैं अर्थात यह एक तरह से माता लक्ष्मी का ही रूप हैं।
कमला माता (Kamla Mata) की पूजा करने से माँ लक्ष्मी के समान ही वर की प्राप्ति होती हैं।
आज हम आपकोकमला माता (Kamla Mata) की कहानी, महत्व, साधना मंत्र के लाभ इत्यादि विस्तार से बताएँगे।
Kamla Mata: कमला माता का अर्थ
कमला का अर्थ है कमल का फूल। मां सती का यह रूप कमल के आसन पर विराजमान है।
इसके साथ ही जिस सरोवर में कमला माता (Kamla Mata) हैं |
वहां भी चारों ओर कमल के फूल हैं।
कमला माता (Kamla Mata) ने हाथों में कमल का फूल भी धारण किया हुआ है,
जिसके कारण इनका नाम कमला देवी पड़ा।
Kamala Mata: कमला माता का रुप
कमला माता (Kamla Mata) का स्वरुप मन को मोह लेने वाला व शांति प्रदान करने वाला हैं।
माता का वर्ण सुनहरे रंग का हैं जिसमें से तेज निकल रहा हैं। उन्होंने लाल रंग के वस्त्र पहने हुए हैं
और कई तरह के सोने के आभूषणों से सुसज्जित हैं। माता ने मुकुट पहना हुआ हैं तथा उनके केश खुले हुए हैं।
भगवान शिव की भांति उनके भी तीन नेत्र हैं तथा वे एक सरोवर में कमल के पुष्प पर विराजमान हैं।
सरोवर में उनके आसपास कई कमल के पुष्प लगे हुए हैं।
के चार हाथ हैं जिसमें से दो में उन्होंने कमल के पुष्प ही पकड़े हुए हैं
तथा अन्य दो हाथ वर व अभय मुद्रा में हैं।
के दोनों ओर चार हाथी हैं जो जल से उनका अभिषेक कर रहे हैं।
का यह रूप अपने भक्तों पर सदैव कृपा करने वाला और उनकी सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला माना जाता हैं।
Kamala Mata: कमला माता की कथा
यह कथा बहुत ही रोचक हैं जो भगवान शिव व उनकी प्रथम पत्नी माता सती से जुड़ी हुई हैं।
हालाँकि उनकी दूसरी पत्नी माता पार्वती माँ सती का ही पुनर्जन्म मानी जाती हैं।
कमला महाविद्या की कहानी के अनुसार, एक बार माता सती के पिता राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया था।
चूँकि राजा दक्ष भगवान शिव से द्वेष भावना रखते थे और अपनी पुत्री सती के द्वारा उनसे विवाह किये जाने के कारण शुब्ध थे,
इसलिए उन्होंने उन दोनों को इस यज्ञ में नही बुलाया।
भगवान शिव इस बारे में जानते थे लेकिन माता सती इस बात से अनभिज्ञ थी।
यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा।
भगवान शिव ने माता सती को सब सत्य बता दिया और निमंत्रण ना होने की बात कही।
तब माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नही होती है।
माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने अपने पति शिव से अनुमति मांगी किंतु उन्होंने मना कर दिया।
माता सती के द्वारा बार-बार आग्रह करने पर भी शिव नही माने तो माता सती को क्रोध आ गया
और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।
तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए जिनमे से अंतिम माँ कमला देवी थी।
मातारानी के यही 10 रूप दस महाविद्या कहलाए।
अन्य नौ रूपों में क्रमशः काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी व मातंगी आती हैं।
कमला माता (Kamla Mata) साधना के लाभ
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि मां लक्ष्मी की पूजा करने से जो लाभ भक्तों को मिलता है,
वही लाभ मां कमला की पूजा से भी मिलता है क्योंकि देवी कमला को मां लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है।
इसलिए जो भक्त मां कमला के स्वरूप की पूजा करते हैं,
उनकी आर्थिक स्थिति और उनके परिवार की स्थिति पहले से बेहतर होती है।
उनके परिवार पर आया आर्थिक संकट दूर होता हैं तथा व्यापार में उन्नति देखने को मिलती हैं।
व्यक्ति विशेष के सुख व वैभव में वृद्धि देखने को मिलती हैं तथा आर्थिक रूप से छाये संकट के सभी बादल छंट जाते हैं।
कमला माता महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती हैं।
गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती हैं
जिसमे से अंतिम दिन महाविद्या कमला की पूजा करने का विधान हैं
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