काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा || Kashi Vishwanath Jyotirlinga Ki Katha - Gyan.Gurucool
chat-robot

LYRIC

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (Kashi Vishwanath Jyotirlinga )की कथा

12 ज्योतिर्लिंगों में से सातवां काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग(Kashi Vishwanath Jyotirlinga)। इसके दर्शन मात्र से ही लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वाराणसी एक ऐसा पावन स्थान है जहाँ काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग(Kashi Vishwanath Jyotirlinga) विराजमान है।
यह शिवलिंग काले चिकने पत्थर का है।

वाराणसी सबसे प्राचीन नगरी है। 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मणिकर्णिका भी यहीं स्थित है।
इस मंदिर का कई बार जीर्णोंद्धार हुआ। इस मंदिर के बगल में ज्ञानवापी मस्ज़िद है। मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है।
काशी पुरातन समय से ही अध्यात्म का केंद्र रहा है।

12 ज्योतिर्लिंगों में से इस ज्योतिर्लिंग का बहुत महत्त्व है।
इस काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग(Kashi Vishwanath Jyotirlinga)पर पंचामृत से अभिषेक होता रहता है।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान मरते हुए प्राणियों के कानों में तारक मंत्र बोलते हैं।
जिससे पापी लोग भी भव सागर की बाधाओं से मुक्त हो जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी का प्रलय काल में अंत नहीं होगा।

प्रलय काल के समय भगवान शिव जी काशी नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे।
भगवान शिव जी को विश्वेश्वर और विश्वनाथ नाम से भी पुकारा जाता है।
पुराणों के अनुसार इस नगरी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है।
सावन के महीने में भगवान शिव जी के काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग(Kashi Vishwanath Jyotirlinga) के दर्शन करने का विशेष महत्त्व है।

Kashi Vishwanath Jyotirlinga

 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (Kashi Vishwanath Jyotirlinga ) इतिहास

 

स्वामी विवेकानंद जी, दयानन्द सरस्वती जी, गोस्वामी तुलसीदास जी जैसे महान व्यक्तित्वों का आगमन इस मंदिर में हुआ है।
इसी स्थान पर संत एकनाथ जी ने वारकरी सम्प्रदाय का ग्रन्थ श्री एकनाथजी भागवत पूरा किया था।

एक बार महारानी अहिल्या बाई के सपने में भगवान शिव जी आये।
अहिल्या बाई जी शिव जी की भक्त थी। सपने में दर्शन करके वे अत्यंत प्रसन्न हुईं।
फिर उन्होंने सन 1780 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (Kashi Vishwanath Jyotirlinga )की कथा 1

भगवान शिव जी अपनी पत्नी पार्वती जी के साथ हिमालय पर्वत पर रहते थे।
भगवान शिव जी की प्रतिष्ठा में कोई बाधा ना आये इसलिए पार्वती जी ने कहा कि कोई और स्थान चुनिए।

शिव जी को राजा दिवोदास की वाराणसी नगरी बहुत पसंद आयी। भगवान शिव जी के लिए शांत जगह के लिए निकुम्भ नामक शिवगण ने वाराणसी नगरी को निर्मनुष्य कर दिया। लेकिन राजा को दुःख हुआ।
राजा ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अपना दुःख दूर करने की प्रार्थना की।

दिवोदास ने बोला कि देवता देवलोक में रहे, पृथ्वी तो मनुष्यों के लिए है। ब्रह्मा जी के कहने पर शिव जी मंदराचल पर्वत पर चले गए।
वे चले तो गए लेकिन काशी नगरी के लिए अपना मोह नहीं त्याग सके। तब भगवान विष्णु जी ने राजा को तपोवन में जाने का आदेश दिया।
उसके बाद वाराणसी महादेव जी का स्थायी निवास हो गया और शिव जी ने अपने त्रिशूल पर
वाराणसी नगरी की स्थापना की।

 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग(Kashi Vishwanath Jyotirlinga) कथा 2

एक और कथा प्रचलित है। एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान में बहस हो गयी थी कि कौन बडा है।
तब ब्रह्मा जी अपने वाहन हंस के ऊपर बैठकर स्तम्भ का ऊपरी छोर ढूंढ़ने निकले और विष्णु जी निचला छोर ढूंढने निकले।
तब स्तम्भ में से प्रकाश निकला।

उसी प्रकाश में भगवान शिव जी प्रकट हुए। विष्णु  जी ने स्वीकार किया कि मैं अंतिम छोर नहीं ढूंढ सका।
लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ कहा कि मैंने खोज लिया। तब शिव जी ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा कभी नहीं होगी
क्योंकि खुद की पूजा कराने के लिए उन्होंने झूठ बोला था। तब उसी स्थान पर शिव जी ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए।

 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (Kashi Vishwanath Jyotirlinga )के कोतवाल

भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है।
इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। काशी विश्‍वनाथ में दर्शन से पहले भैरव के दर्शन करना होते हैं
तभी दर्शन का महत्व माना जाता है।
उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव।
मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव।

Your email address will not be published. Required fields are marked *