केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा || kedarnath Jyotirlinga Ki Katha - Gyan.Gurucool
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 केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga)की कथा

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) बहुत ही प्राचीन है और
विद्वानों एवं ऋषियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 80वीं शताब्दी में द्वापर युग के समय हुआ था।इस मंदिर के चारों ओर बर्फ के पहाड़ हैं।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) मुख्य रूप से पांच नदियों के संगम का मुख्य धाम माना जाता है |

 

यहनदियां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी है।
ऐसी मान्यताएं हैं कि ब्राम्हण गुरु शंकराचार्य के समय से ही  स्वत: उत्पन्न हुए इस शिवलिंग की आराधना करते हैं।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) के समक्ष मंदिर के पुरोहित एवं यजमानों तथा तीर्थ यात्रियों के लिए धर्मशाला उपस्थित है।
मंदिर के मुख्य पुजारी के लिए मंदिर के आसपास भवन बना हुआ है।

 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) का निर्माण

 

मंदिर के मुख्य भाग में मंडप तथा गर्भ ग्रह के चारों और प्रदक्षिणा पथ बना हुआ है।मंदिर के बाहरी हिस्से में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजित हैं।
मंदिर के मध्य भाग में श्री केदारेश्वर
स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है
जिसके अग्र भाग पर भगवान गणेश जी की प्रतिमा और मां पार्वती के यंत्र का चित्र है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) के ऊपरी भाग पर प्राकृतिक स्फटिक माला विराजित है।
श्री ज्योतिर्लिंग के चारों और बड़े-बड़े चार स्तंभ विद्यमान हैं और यह चार स्तंभ चारों वेदों के आधार माने जाते हैं।

 

इन विशालकाय चार स्तंभों पर मंदिर की छत टिकी हुई है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) के पश्चिमी भाग में एक अखंड दीपक विद्यमान है
और हजार सालों से इसकी ज्योति का प्रकाश मंदिर की आस्था को बनाए हुए हैं।
इस अखंड दीपक की ज्योति का रखरखाव मंदिर के पुरोहित सालों से करते आ रहे हैं
ताकि यह अखंड दीपक की ज्योति सदैव मंदिर के भाग में और पूरे केदारनाथ धाम में अपने प्रकाश को बनाए रखें।
मंदिर की दीवारों पर सुंदर एवं आकर्षक फूलों की आकृति को हस्तकला द्वारा उकेरा गया है।

kedaaranaath Jyotirlinga

 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga)

 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) की स्थापना का ऐतिहासिक आधार तब निर्मित हुआ
जब एक दिन हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार एवं महातपस्वी नर और नारायण तप कर रहे थे।
उनकी तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए तथा उनकी प्रार्थना के फल स्वरूप उन्हें आशीर्वाद दिया
कि वह केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) के रूप में सदैव यहां वास करेंगे।

 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) के बाहरी भाग में स्थित नंदी बैल के वाहन के रूप में विराजमान एवं स्थापित होने का आधार तब बना जब द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की विजय पर तथा भातर हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शंकर के दर्शन करना चाहते थे।
इसके फलस्वरूप वह भगवान शंकर के पास जाना चाहते और उनका आशीर्वाद पाना चाहते थे परंतु भगवान शंकर उनसे नाराज थे।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga)की कथा

पांडव भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी पहुंचे परंतु भगवान शंकर ने उन्हें वहां दर्शन नहीं दिए।
इसके पश्चात पांडवों ने हिमालय जाने का फैसला किया और हिमालय तक पहुंच गए परंतु भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे
इसलिए भगवान शंकर वहां से भी अंतर्ध्यान हो गए और केदार में वास किया।
पांडव भी भगवान शंकर का आशीर्वाद पाने के लिए एकजुटता से और लगन से भगवान शंकर को ढूंढते ढूंढते केदार पहुंच गए।

 

भगवान शंकर ने केदार पहुंचकर बैल का रूप धारण कर लिया था।
केदार पर बहुत सारी बैल उपस्थित थी। पांडवों को कुछ संदेह हुआ इसीलिए भीम ने अपना विशाल रूप धारण किया
और दो पहाड़ों पर अपने पैर रख दिए भीम के इस रूप से भयभीत होकर बैल भीम के पैर के नीचे से दोनों पैरों में से होते हुए भागने लगे परंतु एक बैल भीम के पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं थी।

 

भीम बलपूर्वक उस बैल पर हावी होने लगे परंतु वेल धीरे-धीरे अंतर्ध्यान होते हुए भूमि में सम्मिलित होने लगा
परंतु भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया।
पांडवों के इस दृढ़ संकल्प और एकजुटता से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और तत्काल ही उन्हें दर्शन दिए।
भगवान शंकर ने आशीर्वाद रूप में उन्हें पापों से मुक्ति का वरदान दिया।
तब से ही नंदी बैल के रूप में भगवान शंकर की पूजा की जाती है।

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केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga)की कथा

 

भगवान ब्रह्मा के पुत्र धर्म और उसकी पत्नी मूर्ती के दो पुत्र हुए थे।
जिनका नाम नर और नारायण था। इन्ही नर और नारायण ने द्वापर युग में श्री कृष्ण और अर्जुन का अवतार लिया था
और धर्म की स्थापना की थी। श्री भगवद्गीता के चौथे अध्याय के पांचवे श्लोक में आप इस बात की पुष्टि कर सकते हैं।
ये दोनों ही पुत्र नर और नारायण बद्रीवन में स्वयं के द्वारा बनाये गए पार्थिव शिवलिंग के सम्मुख घोर तप किया करते थे।

 

शिव जी उन दोनों बालक से प्रसन्न होकर उनके द्वारा बनाये गए शिवलिंग में प्रतिदिन समाहित हुआ करते थे।
नर और नारायण की इस घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी वहां प्रकट हुए।
ऐसा देखकर दोनों बहुत प्रसन्न हुए।
शिव जी ने उन बालकों से कहा कि मैं तुम दोनों की तपस्या से अति प्रसन्न हूँ।
जो भी वर माँगना चाहते हो मांग सकते हो।

 

तब दोनों बालकों ने भगवान शिव जी से विनती की कि हे प्रभु ! आप तीनों लोकों का कल्याण करने वाले हैं
अर्थात हम सभी के कल्याण हेतु आप यहाँ सदा के लिए लिंग रूप में विराजमान हो जाईए।
आज उसी बद्रीनाथ स्थान पर शिव जी साक्षात विद्यमान हैं।
वहां दो पहाड़ भी हैं जिनका नाम नर और नारायण है।
ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ की तीर्थयात्रा करते समय यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग(kedarnath Jyotirlinga) का नाम पन्च केदार

 

ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शंकर नंदी बैल के रूप में प्रकट हुए थे
तो उनका धड़ से ऊपरी भाग काठमांडू में प्रदर्शित हुआ था
तथा वहां अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है।
भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, भगवान शिव का मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में तथा भगवान शंकर की जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी।
इन्हीं विशेषताओं के फलस्वरुप श्री केदारनाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है।

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