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खाटू श्याम जी (Khatu Shyam Ji)की कथा
(Khatu Shyam Ji)
खाटू श्यामजी (Khatu Shyam Ji)भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार हैं।
महाभारत के भीम के पुत्र घटोत्कच और घटोत्कच के पुत्र बर्बरिक थे।
बर्बरीक को ही बाबा खाटू श्याम (Khatu Shyam Ji)कहते हैं। इनकी माता का नाम हिडिम्बा है।
राजस्थान के शेखावाटी के सीकर जिले में स्थित है परमधाम खाटू।
यहां विराजित हैं खाटू श्यामजी(Khatu Shyam Ji)। खाटू का श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है।
यहां पर प्रतिवर्ष फाल्गुन माह शुक्ल षष्ठी से बारस तक यह मेला लगता है।
श्याम बाबा की महिमा का बखान करने वाले भक्त राजस्थान या भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कोने-कोने में मौजूद हैं।
खाटू श्यामजी की कथा (Khatu Shyam ji ki katha)
बर्बरीक दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे।
बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे।
युद्ध के मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दु एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए
और यह घोषणा कर डाली कि मैं उस पक्ष की तरफ से लडूंगा जो हार रहा होगा।
बर्बरीक की इस घोषणा से कृष्ण चिंतित हो गए।
भीम के पौत्र बर्बरीक के समक्ष जब अर्जुन तथा भगवान श्रीकृष्ण उसकी वीरता का चमत्कार देखने के लिए उपस्थित हुए
तब बर्बरीक ने अपनी वीरता का छोटा-सा नमूना मात्र ही दिखाया।
कृष्ण ने कहा कि यह जो वृक्ष है इसके सारे पत्तों को एक ही तीर से छेद दो तो मैं मान जाऊंगा।
बर्बरीक ने आज्ञा लेकर तीर को वृक्ष की ओर छोड़ दिया।
जब तीर एक-एक कर सारे पत्तों को छेदता जा रहा था उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर पड़ा।
कृष्ण ने उस पत्ते पर यह सोचकर पैर रखकर उसे छुपा लिया की यह छेद होने से बच जाएगा,
लेकिन सभी पत्तों को छेदता हुआ वह तीर कृष्ण के पैरों के पास आकर रुक गया।
तब बर्बरीक ने कहा कि प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया पैर हटा लीजिए,
क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों को छेदने की आज्ञा दे रखी है आपके पैर को छेदने की नहीं।
खाटू श्याम जी की कथा
उसके इस चमत्कार को देखकर कृष्ण चिंतित हो गए।
भगवान श्रीकृष्ण यह बात जानते थे कि बर्बरीक प्रतिज्ञावश हारने वाले का साथ देगा।
यदि कौरव हारते हुए नजर आए तो फिर पांडवों के लिए संकट खड़ा हो जाएगा
और यदि जब पांडव बर्बरीक के सामने हारते नजर आए तो फिर वह पांडवों का साथ देगा।
इस तरह वह दोनों ओर की सेना को एक ही तीर से खत्म कर देगा।
तब भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे।
बर्बरीक ने कहा- मांगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे।
लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फंस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश मांग लिया।
बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया गया।
बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर दान के पश्चात श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया।
आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। जहां कृष्ण ने उसका शीश रखा था उस स्थान का नाम खाटू है।
खाटू श्याम जी का रहस्य(Khatu Shyam Ji Ka Rahasy)
- खाटू श्याम (Khatu Shyam Ji)बाबा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हैं उनसे बड़े सिर्फ श्रीराम ही माने गए हैं।
- खाटूश्याम जी(Khatu Shyam Ji) का जन्मोत्सव हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
- खाटूश्याम जी(Khatu Shyam Ji) मंदिर परिसर में लगता है बाबा खाटू श्याम का प्रसिद्ध मेला। हिन्दू मास फाल्गुन माह शुक्ल षष्ठी से बारस तक यह मेला चलता है। ग्यारस के दिन मेले का खास दिन रहता है।
- श्रीकृष्ण के वरदान से कलियुग में खाटूश्याम जी(Khatu Shyam Ji) पूजा होती है और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा।
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