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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga)की कथा
मध्यप्रदेश के उज्जैन में पुण्य सलिला शिप्रा नदी के तट के निकट भगवान शिव महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga) के रूप में विराजमान है।
उज्जैन एक बहुत ही प्राचीतम शहर है और यह राजा विक्रमादित्य के समय में राजधानी हुआ करती थी।
उज्जैन को अलग-अलग नामों उज्जैयिनी, अमरावती, अवंतिका नामों से भी जाना जाता रहा है।
पुराणों में इसे सात मोक्षदायिनी नगरों हरिद्वार, वाराणसी, मथुरा, द्वारका, अयोध्या और कांचीपुरम में से एक माना जाता है
उज्जैन की शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ कुम्भ मेला हर बारह वर्ष के उपरांत मनाया जाता है
इस दिन यहां एक साथ 10 प्रकार के दुर्लभ योग बने होते हैं
जिसमे आपको वैशाख माह, मेष राशि पर सूर्य, सिंह पर बृहस्पति, स्वाति नक्षत्र, शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा आदि सभी चीजे एक साथ देखने को मिल जाएंगी।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अपना एक अलग ही महत्व है।
माना जाता है कि महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga)पृथ्वी स्थापित एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग है।
प्राचीन युग में पूरी दुनियां का एक मानक समय माना जाता था जोकि यही से निर्धारित होता था।
यह ज्योतिर्लिंग जहां स्थापित है इसके शिखर से कर्क रेखा होकर गुजरती है। इसे पृथ्वी की नाभि स्थल की मान्यता मिली हुई है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga) का इतिहास
महाकाल के इस मंदिर का निर्माण छठवीं शताब्दी में किया गया था।
अगर इतिहास को पढ़ा जाए तो पता चलता है कि उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन हुआ करता था।
इनके शासनकाल में लगभग 4500 वर्षों की हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपरा व मान्यताओं को पूरी तरह से खंडित व नष्ट करने का भरसक प्रयास किया।
मराठा राजाओं ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण करके 22 नवंबर 1728 मे अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही।
मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटी जिसमें पहला, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पुनः प्रतिष्ठित किया गया
तथा यहां पर शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व कुंभ मेला स्नान की पूरी व्यवस्था की हुई।
उज्जैन के लिए लोगो के लिए मंदिर एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि थी और फिर बाद मेंराजा भोज ने महाकालेश्वर मंदिर की पुरानी प्रतिष्ठा को वापस स्थापित किया
बल्कि इसका भव्य निर्माण कराया।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga)की कथा
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga) को लेकर एक बहुत ही अनोखी कहानी जुड़ी हुई है।
अवंतिका नाम से एक रमणीय नगरी थीं, जिसे आज हम उज्जैन नगरी के नाम से जानते हैं।
जो भगवान शिव को बहुत प्रिय है।
शिव पुराण के कोटि रुद्रसहिंता में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है।
इसी नगरी में एक बहुत ज्ञानी व शिवभक्त ब्राम्हण रहता था, इनका नाम वेदप्रिय था।
उनके चार आज्ञाकारी पुत्र थे। यह भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे।
वह हर रोज पार्थिव शिवलिंग बनाकर विधिपूर्वक पूजा किया करते थे।
रत्नमाल पर्वत पर एक दूषण नाम का राक्षस रहता था जिसको ब्रम्हा जी से वरदान प्राप्त था।
वह वरदान के अहंकार में वह धार्मिक व्यत्तिफ़यों को परेशान करता था।
उसने उज्जैन के ब्राम्हण पर आक्रमण करने का विचार बना लिया।
दूषण अवंती के ब्राम्हण को परेशान करना शुरू कर दिया था।
वह ब्राम्हण को कर्मकांड करने से मना करता था।
वह धर्मकर्म के कार्य को करने से रोकता था।
सारे ब्राम्हण उससे परेशान होकर शिव भगवान से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे।
ब्राम्हणाें के विनय पर भगवान शिव ब्राम्हणो के रक्षा के लिए साक्षात महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirlinga) के रूप मे प्रकट हुये।
शिव भगवान ने अपने शक्ति से दूषण को भस्म कर दीया।
भक्तों ने भगवान शिव से वहीं स्थापित होने की प्रार्थना की तो भगवान शिव वहा पर ज्योंर्तिलिंग के रुप में विराजमान हों गए।
इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर पड़ गया। जिसे आप महाकालेश्वर ज्योतिलिंग के नाम से जानते है।
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