महाशिवरात्रि व्रत नियम | Mahashivratri Vrat Katha - Gyan.Gurucool
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महाशिवरात्रि व्रत कथा | Mahashivratri Vrat Katha

( Mahashivratri)व्रत क्यों करना चाइये:-

Mahashivratri हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का बहुत अधिक महत्व है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
महाशिवरात्रि के दिन विधि विधान से भगवान शंकर की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है व्रती को (Mahashivratri) महाशिवरात्रि कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

(Mahashivratri) शिवपुराण के अनुसार प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था।
जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था,
लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया।
संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।

साहूकार के घर पूजा हो रही थी तो शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा चतुर्दशी को उसने (Mahashivratri) शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी।

शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की।
शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला।
लेकिन दिन भर बंदी गृह में रहने के कारण भूख प्यास से व्याकुल था।
शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया।

महाशिवरात्रि व्रत कथा

जब अंधेरा गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी।
वह वन एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात बीताने का इंतजार करने लगा।

(Mahashivratri) उस पेड़ के नीचे शिवलिंग था जो बेलपत्र के पत्तों से ढका हुआ था।
शिकारी को उसके बारे में जानकारी नहीं थी। पेड़ पर चढ़ते समय उसने जो टहनियां तोड़ी वह शिवलिंग पर गिरती रही इस तरह से भूखे प्यासे रहकर शिकारी का (Mahashivratri) शिवरात्रि का व्रत हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए ।
रात के समय एक हिरणी पानी पीने तलाब पर आई।

शिकारी जैसे ही उसका शिकार करने जा रहा था तभी हिरणी बोली मैं गर्भिणी हूं शीघ्र ही प्रसव करूंगी।
तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे। मैं बच्चे के जन्म के पश्चात् तुरंत तुम्हारे समक्ष उपस्थित होऊंगी।
तब तुम मुझे मृत्यु दे देना।

Mahashivratri

Mahashivratri की प्रथम प्रहर

ऐसा सुनकर शिकारी ने हिरणी को जाने दिया। इस दौरान अनजाने में कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिर गए।
इस तरह उसने अंजाने में प्रथम प्रहर की पूजा भी संपन्न कर ली।

कुछ देर बाद एक हिरणी वहां से निकली जैसे ही शिकारी ने उसे मारने हेतु धनुष बाण चढ़ाया तो हिरणी तो हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया हे शिकारी!
मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहणी हूं।
अपने प्रिय की तलाश में भटक रहीं हूं। अपने पति से मिलकर मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगी।
शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

रात का आखिरी पहर बीत रहा था तब भी कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे।

ऐसे में शिकारी ने अनजाने में ही अंतिम पर की पूजा भी कर ली। इस दौरान वहां एक हिरणी अपने बच्चों के साथ आई।
उसने भी शिकारी से निवेदन किया और शिकारी ने उसे जाने दिया।
इसके बाद शिकारी के सामने एक हिरण आया। शिकारी ने सोचा अब तो मैं इसे यहां से नहीं जाने दूंगा इसका शिकार करुंगा।

महाशिवरात्रि व्रत नियम

तब हिरण ने उसे निवेदन किया कि मुझे कुछ समय के लिए जीवनदान दे दो।
शिकारी ने पूरी रात की घटना उस हिरण को सुना दी।
तब हिरण ने कहा कि जिस तरह से तीनों पत्नियां प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई है, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी।
जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है उसी प्रकार मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र उपस्थित होऊंगी।

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। इस तरह सुबह हो गई।
उपवास, रात्रि, जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से अनजाने में हुई पूजा का परिणाम उसे तत्काल मिला।
थोड़ी देर बाद हिरण और उसका परिवार शिकारी के सामने आ गया।
उन सभी को देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई और उसने पूरे परिवार को जीवनदान दे दिया।

अनजाने में (Mahashivratri) शिवरात्रि को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
जब मृतयकाल में यमदूत जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया और उसे शिवलोक ले गए।
शिवजी की कृपा से चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए।( Mahashivratri) शिवरात्रि के महत्व को जानकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

 

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