मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा || mallikarjun jyotirling ki katha - Gyan.Gurucool
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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (mallikarjun jyotirling) की कथा

आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग  (Mallikarjun Jyotirling)विराजमान हैं।
इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं।
महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।
श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से लोगों के सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं, अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग  (Mallikarjun Jyotirling)का इतिहास

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग  (Mallikarjun Jyotirling)का दूसरा स्थान है।
इन 12 जगहों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए हैं इसलिए इसे ज्योर्तिलिंग में कहा जाता है।
हिंदुओं का यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
इस मंदिर में मल्लिकार्जुन भगवान शिव के रूप में विराजमान है।

मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंग मंदिर गर्भगृह बहुत ही छोटा है जिसकी वजह से यहां भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।
मंदिर में एक से अधिक व्यक्ति नहीं जा सकते जिसके लिए यहां भक्तों को लंबी कतार में खड़े होकर प्रतीक्षा करनी पड़ती है
तब भगवान शिव का दर्शन मिलता है।

इस प्राचीन मंदिर की तमिल संतो ने स्तुति गायी है ऐसा कहा जाता है हिंदू धर्म के स्कंद पुराण में श्रीशैलम या श्रीशैल ज्योतिर्लिंग का वर्णन किया गया है।
जब जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी ने पहली बार इस मंदिर की यात्रा की तब तब उन्होंने यहां शिव नंद लहरी की रचना की थी।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग  (Mallikarjun Jyotirling) मंदिर के पास में ही एक जगदंबा माता का मंदिर भी है।

ऐसा कहा जाता है यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना गया है माता का यह मंदिर सती का  स्वरूप ब्रह्मरांबिका के रूप में विख्यात है।
पुराण के अनुसार ऐसा कहा गया है जब माता सती ने यज्ञ में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दी थी तब
भगवान शिव क्रोधित होकर प्रचंड रूप में माता सती के मृत शरीर को उठाकर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाने लगे उस समय जहां-जहां माता की शरीर का अंग गिरा वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया जाने लगा।
जिस स्थान पर माता सती की गर्दन गिरी वही स्थान पवित्र और पावन शक्तिपीठ माना गया है।

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग  (Mallikarjun Jyotirling) की कथा

शिवपुराण के अनुसार, यह कथा शिव जी के परिवार से जुड़ी हुई है।
भगवान शिव के छोटे पुत्र गणेश जी, कार्तिकेय से पहले विवाह करने चाहते थे।
जब यह बात शिव जी और माता पार्वती को पता चली तो उन्होंने इस समस्या को सुलझाने के बारे में विचार किया।
उन्होंने दोनों के सामने एक शर्त रखी।
उन्होंने कहा कि दोनों में से जो कोई भी पृथ्वी की पूरी परिक्रमा कर पहले लौटेगा उनका विवाह पहले कराया जाएगा।

जैसे ही कार्तिकेय ने यह बात सुनी वो पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल गए।
लेकिन गणेश जी ठस से मस नहीं हुए।
वो बुद्धि के तेज थे तो उन्होंने अपने माता-पिता यानि माता पार्वती और भगवान शिव को ही पृथ्वी के समान बताकर उनकी परिक्रमा कर ली।

इस बात से प्रसन्न होकर और गणेश की चतुर बुद्धि को देखकर माता पार्वती और
शिव जी ने उनका विवाह करा दिया।
जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर वापस आए तो उन्होंने देखा की गणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों के साथ हो चुका था
जिनका नाम सिद्धि और बुद्धि था।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा

इनसे गणेश जी को क्षेम और लाभ दो पुत्र भी प्राप्त हुए थे।
कार्तिकेय को देवर्षि नारद ने सारी बात बताई।
इस कार्तिकेय जी नारा हो गए और माता-पिता के चरण छुकर वहां से चले गए।
कार्तिकेय क्रौंच पर्वत पर जाकर निवास करने लगे।
उन्हें मनाने के लिए शिव-पार्वती ने नारद जी को वहां भेजा लेकिन कार्तिकेय नहीं माने।

फिर पुत्रमोह में माता पार्वती भी उनके पास उन्हें लेने गईं तो उन्हें देखकर कार्तिकेय पलायन कर गए।
इस बात से हताश माता पार्वती वहीं बैठ गईं।
वहीं, भगवान शिव भी ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए।
इसके बाद से ही इस जगह को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग  (Mallikarjun Jyotirling)के नाम से जाना जाने लगा।
इसका नाम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग  (Mallikarjun Jyotirling) ऐसे पड़ा क्योंकि माता पार्वती के नाम से मल्लिका और
भगवान शिव का नाम अर्जुन से भी जाना जाता है।

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