LYRIC
(Narad Muni) माता पार्वती देवर्षि नारद के तपोबल और ज्ञान से अत्यंत प्रभावित थी.
वे सदा उनकी प्रशंषा करती रहती थी. एक बार बातों-बातों में वे भगवान शिव (Lord Shiva) के समक्ष नारद मुनि (Narad Muni) की प्रशंषा करने लगी|
तब शिव जी ने उन्हें बताया कि नारद ज्ञान के अथाह सागर हैं|
किंतु एक बार उन्हें अपने ज्ञान और तपोबल का अहंकार हो गया
और इस अहंकार के कारण उन्हें बंदर (Monkey) बनना पड़ गया|
देवर्षि (Narad Muni) नारद के बंदर बनने की बात से माता पार्वती पूर्णतः अनभिज्ञ थी.
उनके मन में इस कथा को जानने की जिज्ञासा जाग उठी. उनकी जिज्ञासा शांत करने भगवान शिव ने उन्हें पूरी कथा सुनाई, जो इस प्रकार है –
(Narad Muni Sampuran Katha)\नारद सम्पूर्ण कथा
हिमालय पर्वत पर एक पवित्र गुफ़ा स्थित थी. उस गुफ़ा के आस-पास का वातावरण बड़ा ही मनमोहक था.
समीप ही गंगा नदी प्रवाहित होती थी. ऊँचे पर्वत और हरे-भरे वन से आच्छादित वह स्थान देवलोक जैसा रमणीय प्रतीत होता था|
एक दिन (Narad Muni)नारद भ्रमण करते हुए उस स्थान पर पहुँच गए| वहाँ का मनोरम दृश्य देख वे मुग्ध हो गए.
वहाँ उन्होंने अपनी तपोस्थली बनाई और भगवान विष्णु की तपस्या में लीन हो गए| जब नारद की तपस्या के बारे में देवराज इंद्रा को पता चला,
तो वे चिंतित हो उठे| उन्हें अपना इंद्रलोक का सिंहासन डोलता दिखाई पड़ने लगा|
वे भयभीत हो गए कि कहीं अपने तपोबल से नारद उनका सिंहासन न छीन ले|
(Narad Muni)देवराज इंद्र (Lord Indra) ने (Narad Muni)नारद की तपस्या भंग करने की ठान ली.
उन्होंने कामदेव को उनके पास भेजा. जब कामदेव नारद के पास पहुँचे, तब वे तपस्या में लीन थे|
कामदेव ने अपनी माया से उनकी कामाग्नि भड़काने का प्रयास प्रारंभ किया.
सर्वप्रथम उन्होंने ऋतु परिवर्तित कर बसंत ऋतु उत्पन्न कर दी|
बसंत ऋतु होते ही पेड़-पौधे रंग-बिरंगे पुष्प से आच्छादित हो गए.
कोयल कूकने लगी और भंवरे गुंजन करने लगे. शीतल और सुगंधित पवन बहने लगी|कामदेव ने (Narad Muni) नारद के पास अप्सरायें भेंजी,
जो नृत्य कर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करने लगी|
Narad Muni Puran
किंतु कामदेव का संपूर्ण प्रयास विफल रहा|(Narad Muni)नारद की तपस्या भंग न हो सकी|
यह देख कामदेव भयभीत हो उठे. उन्हें भय था कि कहीं इस कृत्य के लिए नारद उन्हें श्राप न दें दे|
(Narad Muni)वे उनसे क्षमा मांगने लगे|(Narad Muni) नारद ने उन्हें तो क्षमा कर दिया,
किंतु काम को जीत लेने के कारण उनका मन अहंकार से भर उठा|
मन में अहंकार लिए हुए वे भगवान शिव के पास पहुँचे और उनके सामने स्वयं का बखान करने लगे|
शिवजी समझ गए कि नारद अहंकार में चूर है| उन्होंने नारद को परामर्श दिया
कि यह बात भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को न बताये|शिवजी जानते थे
कि भगवान विष्णु यदि नारद के अहंकार को समझ गए, तो इसका परिणाम (Narad Muni) नारद को किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ेगा|
किंतु अपने अहं में चूर(Narad Muni) नारद ने शिवजी की बात नहीं मानी
और क्षीरसागर पहुँचकर भगवान विष्णु के समक्ष कामदेव (Kamdev) की माया विफ़ल करने का वृतांत सुना दिया|
भगवान विष्णु को नारद का अहंकार समझते देर न लगी|(Narad Muni )नारद से वे कुछ न बोले,
किंतु उनका अहंकार तोड़ने अपनी लीला रच दी|
कुछ देर उपरांत नारद भगवान विष्णु से आज्ञा लेकर प्रस्थान कर गए| वे जिस मार्ग से जा रहे थे,
वहाँ भगवान विष्णु ने अपनी माया से एक सुंदर नगर का निर्माण कर दिया| उस नगर का राजा शीलनिधि था| उसकी पुत्री विश्वमोहिनी थी,
जो सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थी| उसके सौंदर्य पर रीझकर कई राज्यों के राजकुमारों ने उससे विवाह करने का प्रस्ताव राजा के पास भिजवाया था|
देवऋषि नारद के बंदर बनने की कथा
किंतु किसी राजकुमार का प्रस्ताव स्वीकार करने के स्थान पर राजा शीलनिधि ने राजकुमारी विश्वमोहिनी के स्वयंवर का आयोजन कर दिया.
कई सुंदर, सुयोग्य और प्रतापी राजकुमार स्वयंवर हेतु नगर में उपस्थित हुए|
(Narad Muni)नारद नगर में पहुंचकर राजा शीलनिधि से मिलने पहुँचे|
राजा शीलनिधि ने उन्हें राजकुमारी विश्वमोहिनी के स्वयंवर के बारे में बताया
तथा उसकी हस्तरेखा देख उसके भविष्य के बारे में जानकारी देने का निवेदन किया|
राजकुमारी विश्वमोहिनी जब नारद के समक्ष उपस्थित हुई, तो वे उसका रूप देख मोहित हो गए|
उसकी हस्तरेखा में लिखा था कि जो व्यक्ति उससे विवाह करेगा, वह अजेय और अमर हो जायेगा|
नारद ने हस्तरेखा में लिखी यह बात पढ़ तो ली, किंतु राजा और राजकुमारी को नहीं बताई. वे उन्हें कुछ और ही बताकर वहाँ से चले आये|
(Narad Muni)नारद मुनि अपना वैराग्य भूल चुके थे| वे राजकुमारी से विवाह करना चाहते थे|
उन्होंने भगवान विष्णु का ध्यान किया| जब भगवान विष्णु प्रकट हुए, तो नारद ने उनसे सुंदर रूप की मांग की,
ताकि सुंदर रूप के बल पर राजकुमारी विश्वमोहिनी से विवाह कर सकें|
देवऋषि नारद के बंदर बनने की कथा
भगवान विष्णु ने कहा, “नारद (Narad Muni), तुम्हारा कल्याण हो और अंतर्ध्यान हो गए|”
अपनी माया से उन्होंने नारद को बंदर का रूप दे दिया| नारद मुनि प्रसन्न मुद्रा में स्वयंवर के लिए निकल पड़े|
वे इस बात से पूर्णतः थे कि उनका मुख बंदर के समान हो गया है|
एक पेड़ के पीछे छिपे दो शिवगण यह सारी माया देख रहे थे|
वे भी नारद मुनि के पीछे-पीछे स्वयंवर में पहुँच गए|
स्वयंवर में वे नारद के निकट ही बैठे और आपस में उनके रूप की प्रशंषा करने लगे.
यह प्रशंषा नारद ने सुन ली और उनका अहंकार अपने चरम पर पहुँच गया.
वे यह मान बैठे थे कि राजकुमारी विश्वमोहिनी उनको ही वरमाला पहनाएगी|
किंतु जब राजकुमारी विश्वमोहिनी वरमाला लेकर आयी, तो नारद को देखे बिना ही एक अन्य राजकुमार के गले में वरमाला डाल दी.
यह राजकुमार और कोई नहीं, बल्कि भगवान विष्णु ही थे|
भगवान विष्णु रूपी राजकुमार के गले में वरमाला देख अहंकार में चूर नारद के मन में क्रोध और ईर्ष्या का भाव जाग गया|
उसी समय शिवगणों ने उनका परिहास करते हुए कहा, “ऐसे मुख को राजकुमारी क्या उसके दासी भी न देखे| तनिक जल में अपना मुख तो देखो|”
(Narad Muni) नारद ने जब जल में अपना वानर मुख देखा, तो उनका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया|
क्रोध के आवेश में उन्होंने दोनों शिवगणों को राक्षस बन जाने का श्राप दिया और वहाँ से भगवान विष्णु से मिलने निकल गए|
तब तक उनका मुख समान्य हो चुका था|
मार्ग में ही उन्हें भगवान विष्णु मिल गए| उनके साथ माता लक्ष्मी और विश्वमोहिनी भी थी|
नारद को भगवान विष्णु विष्णु की माया समझते देर न लगी|
क्रोध भाव में वे उन पर आरोप लगाने लगे, “आपका ह्रदय छल और कपट से भरा हुआ है|
नारद सम्पूर्ण कथा
समुद्र मंथन के समय भी आपने शिव जी को बावला बनाकर विषपान
और असुरों को मदिरापान करा कर स्वयं लक्ष्मी जी और कौस्तुभ मणि प्राप्त कर ली थी|
आज आपने मेरे साथ छल किया है| इसका परिणाम आपको अवश्य भुगतना पड़ेगा|
आपने मनुष्य रूप धारण कर विश्वमोहिनी को प्राप्त किया है|
मैं आपको श्राप देता हूँ कि आपको मनुष्य योनी में जन्म लेना होगा
और स्त्री वियोग का दुःख भोगना होगा| आपने मुझे वानर मुख दिया था,
इसलिए आपको वानरों से सहायता लेनी होगी|”
नारद मुनि के श्राप को भगवान विष्णु ने स्वीकार कर लिया
और अपनी माया के प्रभाव से नारद मुनि को मुक्त कर दिया|
माया से मुक्त होने पर नारद मुनि अपनी भूल पर पछताने लगे|
किंतु वे भगवान विष्णु को श्राप दे चुके थे, जो वापस नहीं लिया जा सकता था|
(Narad Muni) नारद मुनि को माया से मुक्त देखकर शिवगण उनके पास पहुँचे
और क्षमायाचना करने लगे और श्रापमुक्त करने का आग्रह करने लगे. तब नारद मुनि ने कहा, “मेरा श्राप वापस तो नहीं हो सकता|
तुम दोनों रावण (Ravan) और कुंभकर्ण (Kumbhkarn) के रूप में बलवान और तेजवान राक्षस के रूप में जन्म लोगे
और अपने बल से पूरे विश्व पर विजय प्राप्त करोगे| भगवान श्रीराम (Shree Ram) के हाथों मृत्यु प्राप्त कर तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी|”
नारद मुनि कथा क्यों प्रचलित है
इस तरह नारद मुनि (Narad Muni) के अहंकार ने उन्हें वानर मुख (Monkey Face) बनाकर परिहास का पात्र बना दिया
और उनके क्रोध के वशीभूत दिए श्राप के कारण भगवान विष्णु को श्री राम के रूप में जन्म लेकर सीता वियोग सहना पड़ा|
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