Omkareshwar Jyotirling Katha- Unveiling the story of ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग - Gyan.Gurucool
chat-robot

LYRIC

ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग (Omkareshwar Jyotirling) की कथा

Omkareshwar Jyotirling

 

ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग (Omkareshwar Jyotirling) भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योर्तिलिंग माना गया है
यह मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा में नर्मदा नदी के बीच मन्धाता पर्वत व शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है।
यहां पर मन्धाता नामक राजा ने शिव की घोर तपस्या करके प्रसन्न किया था
और जनकल्याण हेतु यहां पर ज्योर्तिलिंग के रूप में विराजित होने का आग्रह किया था।
इन्हीं के नाम पर इसका नाम मन्धाता पर्वत रखा गया है।

ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग दो रूपों में विभक्त है जिसमें ओंकारेश्वर और ममलेश्वर शामिल है
शिव पुराण में ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंगको परमेश्वर लिंग भी कहा जाता है।
यहां भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप की पूजा होती है
और भगवान शिव की विधान से पूजा करने से शिवजी प्रसन्न हो जाते है और जीवन के सभी कष्ट दूर कर देते हैं।

यहां पर नर्मदा नदी ओम के आकार में बहती हैं। पुराणों में इस तीर्थ स्थल को विशेष महत्व बताया गया है।
यहां तीर्थयात्री सभी तीर्थों का जल लेकर ओमकारेश्वर को अर्पित करते हैं तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) का इतिहास

इस मंदिर में शिव भक्त कुबेर ने भगवान की तपस्या करके शिवलिंग की स्थापना की थी
भगवान शिव ने कुबेर को देवताओं का धनपति बनाया था |
और कुबेर को स्नान करने के लिए शिव जी ने अपने जटा से कावेरी नदी उत्पन्न की थी।

ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग (Omkareshwar Jyotirling) इस मंदिर में 68 तीर्थ है| जिसमें 33 करोड़ देवी देवता परिवार सहित रहते हैं|
2 ज्योतिर्लिंग  सहित 108 शिवलिंग भी हैं|  यहां भगवान शिव साक्षात प्रकट हुए हैं।
इसलिए इन्हें ज्योतिर्लिंग कहा जाता है और ऐसा कहा जाता है कि यहां का तट ओम के आकार का है
यह ज्योतिर्लिंग पंचमुखी है लोगों का मानना है कि
भगवान शिव तीनों लोको का भ्रमण करके यहां विश्राम करते हैं

इसलिए यहां रात्रि में भगवान शिव की शयन आरती भी की जाती है। यहां काफी दूर-दूर से भक्त गण दर्शन के लिए भारी से भारी संख्या में आते हैं
और ऐसा कहा जाता है कि यहां आने से सभी भक्तों के संकट दूर हो जाते हैं। यह 5 मंजिला मंदिर है बहुत ही भव्य तरीके से निर्मित किया गया है।

ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग

इस मंदिर में विराजमान ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग (Omkareshwar Jyotirling) पंचमुखी है ।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव तीनों लोको का भ्रमण करके यहां विश्राम करते हैं। पर्वत पर एक बार भ्रमण करते हुए नारद जी विंध्याचल पहुंचे।
पर्वतराज विंध्याचल ने नारद जी का बड़ा आदर सत्कार किया और बड़े अभिमान के साठ कहा की मुनिवर मैं सभी प्राकार से समृद्ध हूं।

नारद जी विंध्याचल की ऐसी अभिमान भरी बातें सुनकर लंबी सांस खींचने लगे। ऐसा देख विंध्याचल ने नारद जी से इसका कारण पूछते हुए कहा।
पर्वत ने कहा की मुनिवर ऐसी कौन सी कमी आपको दिखाई दे रही है जो देखकर आप ने लंबी सांस खींची।
पर्वतराज विंध्याचल के पूछने पर नारद जी ने कहा तुम्हारे पास सब कुछ होते हुए भी तुम सुमेरु पर्वत से ऊंचे नहीं हो।

सुमेरु पर्वत का भाग देव लोक तक जाता है और तुम्हारे शिखर का भाग वहां तक कभी नहीं पहुंच सकता
ऐसा कह कर नारद जी वहां से चले गए।
नारद जी द्वारा ऐसी बातें सुनकर विंध्याचल को बहुत दुख हुआ
और वह मन ही मन शोक करने लगा।
इसके पश्चात जहां भगवान शिव साक्षात शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं

वहां पर विंध्याचल  शिवलिंग स्थापित कर भगवान शिव की आराधना करने लगा।
और लगातार भगवान शिव की  6 महीने तक पूजा अर्चना की।
विंध्याचल के सच्ची श्रद्धा से प्रभावि होकर भगवान शिव साक्षात प्रकट हो गए
और विंध्याचल को दर्शन दिए और  से वर मांगने को कहा।

Omkareshwar Jyotirling

विंध्याचल ने कहा-‘हे देवेश्वर महेश यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे कार्य सिद्ध करने वाली अभीष्ट बुद्धि प्रदान करें.

भगवान शिव ने विंध्य को उत्तम वर दिया। उसी समय देवगढ़ और कुछ ऋषि गण भी वहां आ गए।
उन्होंने भगवान शंकर की विधिवत पूजा की और स्तुति के बाद  भगवान् शिव से अनुरोध किया
की वह उसी स्थान पर विराजमान हो जाएं।

भगवान शिव ने उन सबकी बातो को स्वीकार कर लिया और
वहां पर स्थित एक ही ओंकार लिंग 2 स्वरूपों में विभक्त हो गया। प्रवण के अंतर्गत जो सदाशिव उत्पन्न हुए उन्हें ‘ओंकार’ के नाम से जाना गया।
इसके अलावा  पार्थिव मूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई उसे ‘परमेश्वर लिंग’ के नाम से जाना जाता गया।
इस परमेश्वर लिंग को ममलेश्वर लिंग भी कहा जाता है।

 

ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) का महत्व

ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग (Omkareshwar Jyotirling) के भीतर अनेक मंदिर हैं।
नर्मदा के दोनों दक्षिण और उत्तरी तट पर मंदिर है अगर कोई भक्त ओंकारेश्वर क्षेत्र की तीर्थ यात्रा करता है
तो उसे केवल ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन ही नहीं बल्कि वहां बसे अन्य 24 अवतारों के भी दर्शन करना चाहिए।

ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग (Omkareshwar Jyotirling) की महिमा का उल्लेख पुराणों में शंकद पुराण,
शिव पुराण व वायु पुराण में किया जाता है हिंदुओं में सभी तीर्थों के पश्चात ओंकारेश्वर के दर्शन व पूजन का विशेष महत्व है
तीर्थयात्री सभी तीर्थों का जल लेकर ओंकारेश्वर में अर्पित करते हैं
तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं।

यहां विराजित भगवान शिव के ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग (Omkareshwar Jyotirling) के दर्शन मात्र ही अनेक मनोकामना पूर्ण हो जाती है
ओंकारेश्वर धाम किसी मोक्ष धाम से कम नहीं है ओम के आकार में बने धाम की परिक्रमा कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Your email address will not be published. Required fields are marked *