पापमोचनी एकादशी व्रत कथा || Papmochani Ekadashi Vrat katha - Gyan.Gurucool
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पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) व्रत कथा

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi ) कहा जाता है।
पूरे वर्ष में कुल मिलाकर 24 एकादशी पड़ती हैं। एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु के पूजन का विधान है।
सनातन धर्म में एकादशी के व्रत को सभी व्रतो में श्रेष्ठ बताया है।

इस दिन व्रत करने से आपके सारे पाप ख़त्म हो जाते हैं जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर होता है पापमोचनी यानी पाप हरने वाली. इस दिन व्रत करने से आपको सुख, समृद्धि और मोक्ष प्राप्त होता है।

यह एकादशी दो प्रमुख त्योहारों होली और नवरात्रि के मध्य समय में पड़ती है।
इस बार पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi ) 18 मार्च 2023 दिन शनिवार को पड़ रही है।
जानते हैं पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi )का महत्व, शुभ समय और व्रत विधि।

Papmochani Ekadashi

 

पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi ) का शुभ मुहूर्त

 

  • एकादशी तिथि प्रारंभ – 17 मार्च को दोपहर 2:06 बजे

 

  • एकादशी तिथि समाप्त- 18 मार्च को सुबह 11 बजकर 13 मिनट पर

 

  • एकादशी व्रत का मुहूर्त- 19 मार्च को प्रात: 06 बजकर 27 मिनट से 08 बजकर 07 मिनट तक

 

पापमोचनी एकादशी(Papmochani Ekadashi ) व्रत विधि

  • पापमोचनी एकादशी के विभिन्न अनुष्ठान और नियम भी दशमी के दिन यानि एकादशी तिथि से एक दिन पहले से ही आरंभ हो जाते हैं।

 

  • एकादशी से एक दिन पहले सूर्य डूबने के बाद भोजन न करें और सुबह उठकर स्नान करने के पश्चात व्रत का संकल्प लें।

 

 

  • विष्णु जी को चंदन का तिलक लगाएं और पुष्प, प्रसाद अर्पित करें।

 

  • इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें और एकादशी व्रत के महातम्य की कथा पढ़ें।

 

  • पूरे दिन भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत करें।

 

  • दूसरे दिन द्वादशी तिथि पर सुबह पूजन करने के बाद ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं।

 

  • उन्हें दान दक्षिणा देकर विदा करें और पारण काल में स्वयं भी व्रत का पारण करें।

Papmochani Ekadashi

 

पापम

धार्मिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में चैत्रथ नाम का एक बहुत ही सुंदर वन था।
इसी वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या किया करते थे।
देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं और देवताओं के साथ इस वन में विचरण करते थे।

मेधावी ऋषि शिव के भक्त थे, लेकिन अप्सराएँ कामदेव की अनुयायी थीं, जो शिव विरोधी थे।
इसलिए एक बार कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू घोषा नाम की एक अप्सरा को भेजा।

उसने अपने नृत्य, गायन और सौंदर्य से मेधावी ऋषि को विचलित कर दिया
और ऋषि मेधावी मंजुघोषा अप्सरा पर आसक्त हो गए।
इसके बाद ऋषि ने कई साल मंजूघोषा के साथ ऐशो-आराम में बिताए।

समय बीतने के बाद, मंजुघोषा ने लौटने की अनुमति मांगी, जब मेधावी ऋषि को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी तपस्या खो दी।

जब ऋषि को पता चला कि कैसे मंजुघोषा ने अपनी तपस्या भंग की है, तो उन्होंने क्रोधित होकर मंजूघोषा को पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया।
इसके बाद अप्सरा ऋषि के चरणों में गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा।
मंजू घोषा के बार-बार आग्रह करने पर मेधावी ऋषि ने उन्हें श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए कहा कि पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे
और तुम अपने पूर्व स्वरूप को प्राप्त कर लोगे।

अप्सरा को मोक्ष का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता के ऋषि च्यवन के पास पहुंचे।
श्राप सुनकर ऋषि च्यवन ने कहा- “हे पुत्र, तुमने यह अच्छा नहीं किया, ऐसा करके तुमने पाप भी कमाया है,
इसलिए तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो।
इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से अप्सरा मंजुघोषा श्राप से मुक्त हो गई और मेधावी ऋषि भी सभी पापों से मुक्त हो गए।

पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) का महत्व

पापमोचनी इस एकादशी के नाम से ही सिद्ध होता है, पापों का नाश करने वाली।
जो मनुष्य तन मन की शुद्धता और नियम के साथ पापमोचनी एकादशी का व्रत करता है
और जीवन में गलत कार्यों को न करने का संकल्प करता है,
उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जिससे उसे सभी दुखों से छुटकारा मिलता है और मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्ति होती है।
पाप मोचनी एकादशी का व्रत करने वाला व्यक्ति शांतिपूर्ण और सुखी जीवन व्यतीत करता है।

 

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