पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi Katha) - Gyan.Gurucool
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पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi )

पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi ) एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष को मिलाकर प्रत्येक माह में 2बार एकादशी पड़ती है।
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार (Papmochani Ekadashi)
पापमोचनी एकादशी व्रत में व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

इस व्रत कथा का पाठ करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है।
और अंत समय में मानसिक शांति मिलती और हर तरह की मनचाही इच्छा पूरी हो जाती है लेकिन एकादशी की कथा सुने बिना ये व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है
अगर पूजा के बाद इस कथा को नहीं सुना जाए तो व्रत का फल नहीं मिलता ।

पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi)  पापमोचनी एकादशी व्रत कथा :- 

शास्त्रों में कहते हैं कि पापमोचनी एकादशी की कथा स्वयं ब्रह्मा जी ने नारदजी को सुनाई थी
कथाओं के अनुसार एक वन में देवराज इन्द्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित विचरण कर रहे थे।
उसी वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी शिव जी की तपस्या में लीन थे।

तभी एक मंजुघोषा नाम की अप्सरा की नजर मेधावी पर पड़ी और वह मेधावी पर मोहित हो गई।
उसे पाने के लिए अप्सरा ने बहुत से प्रयत्न किए और कामदेव ने भी उस अप्सरा की बहुत सहायता की।

ऐसा भी कहा जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से (Papmochani Ekadashi)पापमोचनी एकादशी व्रत के बारे में बताने को कहा जिसे ब्रह्मा देव ने नारद मुनि को यह कथा सुनाई थी।

और कुछ शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि भगवान कृष्ण ने स्वयं पांडु पुत्र अर्जुन को (Papmochani Ekadashi)  पापमोचनी एकादशी व्रत का महत्व बताया था।
कहा जाता है राजा मांधाता ने लोमश ऋषि से जब पूछा कि अनजाने में हुए पापों से मुक्ति कैसे हासिल की जाती है।
तब लोमश ऋषि ने पापमोचनी एकादशी व्रत का जिक्र करते हुए राजा को एक पौराणिक कथा सुनाई थी।

Papmochani Ekadashi

 

पापमोचनी एकादशी

कथा के अनुसार, एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी वन में तपस्या कर रहे थे।
उस समय मंजूघोषा नाम की अप्सरा वहां से गुजर रही थी।
तभी उस अप्सरा की नजर मेधावी पर पड़ी और वह मेधावी पर मोहित हो गई।
उसके बाद अप्सरा ने मेधावी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ढेरों जतन किए।

मंजुघोषा को ऐसा करते देख कामदेव भी उनकी मदद करने के लिए आ गए ‌।
इसके बाद मेधावी मंजुघोषा का नृत्य देखकर मजुघोषा की और आकर्षित हो गए और 57 साल तक दोनों रति क्रीड़ा में लीन रहे।
जब अप्सरा ने मेधावी से स्वर्गलोक वापस जाने की अनुमति मांगी,
तब मेधावी को अपनी गलती का एहसास हुआ कि वह भगवान शिव की तपस्या करना ही भूल गए।

समय बीतने के बाद मेधावी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ कि इस अप्सरा के कारण वे अपनी साधना से विचलित हुए तो उन्होंने मंजुघोषा को दोषी मानते हुए उन्हें पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया।
जिससे अप्सरा बहुत दुखी हुई।
उसके बाद मंजुघोषा ने इस श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा तो अप्सरा ने तुरंत अपनी ग़लती की क्षमा मांगी।

पापमोचनी एकादशी

अप्सरा की क्षमायाचना सुनकर मेधावी ने मंजुघोषा को चैत्र मास की पापमोचनी एकादशी व्रत के बारे में बताया। इतना कहकर मेधावी ऋषि अपने पिता के आश्रम में चले गए। जब पिता को इस बात की जानकारी हुई
तो वे क्रोधित हुए और उन्होंने मेधावी ऋषि को भी पापमोचनी एकादशी व्रत रखने का आदेश दिया।

जब चैत्र कृष्ण (Papmochani Ekadashi)  एकादशी तिथि आई तो मंजुघोषा ने मेधावी के कहे अनुसार विधिपूर्वक (Papmochani Ekadashi ) पापमोचनी एकादशी का व्रत किया।
और भगवान विष्णु की पूजा की।
पापमोचनी एकादशी के पुण्य प्रभाव से उसे सभी पापो से मुक्ति मिल गई थी।

इस व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा फिर से अप्सरा बन गई
और स्वर्ग में वापस चली गई। मंजुघोषा के बाद मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया
और अपने पापो को दूर कर अपने खोये हुए तेज को पाया। 

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