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शिव और नंदी कथा की प्रतिष्ठा/(Life prestige of Shiva and Nandi story)
(Shiv Aur Nandi) जब भी हम शिवालय जाते हैं, तो देखते हैं कि शिवलिंग के पास माता पार्वती, कार्तिकेय और गणेशजी के साथ नंदी भी विराजमान है.
हिन्दू धर्म में नंदी भगवान शिव के निवास कैलाश के द्वारपाल हैं|
साथ ही बैल के रूप में वे उनके वाहन भी हैं.
उन्हें हर शिव मंदिर में भोले- शंकर के साथ प्रतिष्ठित किया जाता है|
संस्कृत में नंदी का अर्थ है | Meaning of Nandi in Sanskrit
– प्रसन्नता या आनंद| नंदी को शक्ति, समर्थता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है.
शैव परंपरा में नंदी को नंदीनाथ संप्रदाय का मुख्य गुरु भी माना जाता है|
(Shiv Aur Nandi) नंदी शिव के वाहन होने के साथ ही उनके साथी और उनके गणों में सर्वोच्च हैं|
क्या आप जानते हैं कि नंदी का जन्म कैसे हुआ? उनके माता पिता कौन थे?
कैसे नंदी शिव के परम प्रिय हो गए? कैसे नंदी भगवान शिव के वाहन बने?
क्यों वे शिवलिंग के साथ विराजते हैं?
पौराणिक कथा
कथानुसार ब्रम्हचारी व्रत का पालन करते हुए एक बार शिलाद ऋषि को भय सताने लगा कि उनकी मृत्यु के बाद उनका संपूर्ण वंश समाप्त हो जायेगा|
वे एक शिशु को गोद लेना चाहते थे| लेकिन वे चाहते थे कि जिस शिशु को वे गोद लें,
वह अध्यात्मिक हो तथा उस पर भगवान शिव की विशेष कृपा और आशीर्वाद हो|
अपनी कामना की पूर्ति के लिए उन्होंने भगवान शिव का कठोर तप प्रारंभ किया. कई वर्षों तक वे तप में लीन रहे|
जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके समक्ष प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा|
शिलाद ऋषि ने पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा| भगवान शिव शिलाद ऋषि को उनका मनचाहा वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए|
भगवान शिव के अंतर्ध्यान होने के बाद शिलाद ऋषि ने जब अपनी आँखें खोली, तो उनकी गोद में एक शिशु था |
उस शिशु के चेहरे पर एक अलौकिक तेज था|
(Shiv Aur Nandi)शिलाद ऋषि ने उसका नाम नंदी रखा और उसका पालन-पोषण करने लगे. वे उससे बहुत स्नेह करते थे.
किंतु नियति ने नंदी के लिए कुछ और ही लिख रखा था|
एक दिन मित्र और वरुण नामक दो संत शिलाद ऋषि के आश्रम में पधारे. शिलाद ऋषि ने उनका खूब आदर-सत्कार किया|
(Shiv Aur Nandi) नंदी ने भी उनकी बहुत सेवा की|
शिलाद ऋषि और नंदी
प्रस्थान करते समय शिलाद ऋषि और नंदी ने दोनों संतों का आशीर्वाद लिया|
संतो ने शिलाद ऋषि को दीर्घायु और खुशहाली का आशीर्वाद दिया|
किंतु जब नंदी को आशीर्वाद देने की बारी आई, तो उनके माथे पर चिंता की लकीरे खिंच गई|
शिलाद ऋषि ने यह तुरंत भांप लिया|
जब वे मित्र और वरुण ऋषि को आश्रम के बाहर तक छोड़ने गये, तो उनसे पूछ लिया
कि उन्होंने(Shiv Aur Nandi) नंदी को लंबी आयु का आशीर्वाद क्यों नहीं दिया?
तब दोनों संतो ने उन्हें बताया कि नंदी अल्पायु है|
यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंताग्रस्त हो गये| नंदी ने जब पिता को चिंतित देखा, तो उसका कारण पूछा|
शिलाद ऋषि ने नंदी को पूरी सच्चाई बता दी|
पिता की बात सुन नंदी हंसने लगे| आश्चर्यचकित पिता ने जब कारण पूछा, तो नंदी बोले, “पिताश्री, आपने मुझे भगवान शिव की कृपा से प्राप्त किया है|
जिन पर शिवजी की कृपा होती हैं, उन्हें कोई संकट छू नहीं सकता|
यह कहकर वे पिता का आशीर्वाद प्राप्त कर भगवान शिव की तपस्या करने वन चले गए और तप करने लगे|
(Shiv Aur Nandi) नंदी का तप इतना कठोर, ध्यान इतना प्रबल और आस्था इतनी मजबूत थी
कि भगवान शिव को प्रकट होने में अधिक समय नहीं लगा|
वरदान
शिव ने प्रकट होकर नंदी से वरदान मांगने को कहा|(Shiv Aur Nandi) नंदी के पूरी उम्र उनका सानिध्य मांग लिया|
तब शिव ने उन्हें बैल का चेहरा प्रदान कर अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया और अपने गणों में सर्वोच्च स्थान प्रदान किया|
शिव ने आशीर्वाद से नंदी मृत्यु के भय से मुक्त होकर अजर-अमर हो गये|
(Shiv Aur Nandi) भगवन शिव ने गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया|
इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गये|
(Shiv Aur Nandi)भगवान शिव ने नंदी को वरदान दिया था कि जहाँ उनका निवास होगा,
वहाँ नंदी का भी निवास होगा| माना जाता है कि तबसे शिव मंदिर में शिवलिंग के साथ नंदी की भी स्थापना की जाती हैं|
(Shiv Aur Nandi) नंदी पवित्रता, विवेक, बुद्धि और ज्ञान के प्रतीक हैं|
उनका हर क्षण भगवान को समर्पित है| वे मनुष्य को शिक्षा देते हैं कि वे अपना हर क्षण परमात्मा की सेवा में अर्पित करें,
ताकि वे भगवान की कृपा के पात्र बन जाएँ|
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