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श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Shri Bhimashankar Jyotirlinga)कथा
श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Shri Bhimashankar Jyotirlinga) की स्थापना
(Shri Bhimashankar Jyotirlinga) मंदिर महाराष्ट्र के पुणे के सह्याद्री इलाके में स्थित है।
यह भीमा नदी के तट पर स्थित है और इस नदी का स्रोत माना जाता है। इस मंदिर के जीवन की कथा कुंभकर्ण के पुत्र भीम से जुड़ी हुई है।
आज हम स्वयंभू शिवशंकर के छठे ज्योतिर्लिंग की बात करेंगे।
शिव का यह प्रसिद्ध भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किलोमीटर दूर सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है।
जब भीम को पता चला कि वह कुंभकर्ण का पुत्र बन गया है,
जो भगवान राम के रूप में अपने अवतार में भगवान विष्णु द्वारा नष्ट हो गया, तो उसने भगवान विष्णु से बदला लेने की कसम खाई।
उन्होंने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की, जिन्होंने उन्हें विशाल शक्ति प्रदान की|
श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Shri Bhimashankar Jyotirlinga) का नाम
श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Shri Bhimashankar Jyotirlinga) का नाम भीमा शंकर किस कारण से पडा इस पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है|
कथा महाभारत काल की है|
महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के मध्य हुआ था|
इस युद्ध ने भारत मे बडे महान वीरों की क्षति हुई थी|
दोनों ही पक्षों से अनेक महावीरों और सैनिकों को युद्ध में अपनी जान देनी पडी थी|
इस युद्ध में शामिल होने वाले दोनों पक्षों को गुरु द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था|
कौरवों और पांडवों ने जिस स्थान पर दोनों को प्रशिक्षण देने का कार्य किया था| वह स्धान है|
आज उज्जनक के नाम से जाना जाता है|
यहीं पर आज भगवान महादेव का भीमशंकर विशाल ज्योतिर्लिंग है|
कुछ लोग इस मंदिर को श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Shri Bhimashankar Jyotirlinga) भी कहते है|
श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Shri Bhimashankar Jyotirlinga) प्रसिद्ध क्यों है?
यहाँ के आस-पास कई कुंड मौजूद है जिन्हें मोक्ष कुंड, कुशारण्य कुंड, सर्वतीर्थ कुंड, ज्ञान कुंड के नाम से जाना जाता है।
इनमें से मोक्ष कुंड का संबंध महर्षि कौशिक से है।
वहीँ कुशारण्य कुंड की बात करें तो इसका उद्गम भीमा नदी से हुआ है।
इन कुंडों की विशेषता यह है कि इनमें स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है
भीमाशंकर नदी की स्थापना से पहले ही यहाँ पर माता पार्वती का एक सुप्रसिद्ध था जो कमलजा मंदिर के नाम से लोकप्रिय है।
श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Shri Bhimashankar Jyotirlinga )कथा
श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (Shri Bhimashankar Jyotirlinga)का वर्णन शिवपुराण में मिलता है।
शिवपुराण में कहा गया है, कि पुराने समय में भीम नाम का एक राक्षस था।
वह राक्षस कुंभकर्ण का पुत्र था। परन्तु उसका जन्म ठीक उसके पिता की मृ्त्यु के बाद हुआ था।
अपनी पिता की मृ्त्यु भगवान राम के हाथों होने की घटना की उसे जानकारी नहीं थी।
समय बीतने के साथ जब उसे अपनी माता से इस घटना की जानकारी हुई तो वह श्री भगवान राम का वध करने के लिए आतुर हो गया।
अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की।
उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे ब्रह्मा जी ने विजयी होने का वरदान दिया।
वरदान पाने के बाद राक्षस निरंकुश हो गया। उससे मनुष्यों के साथ साथ देवी देवताओ भी भयभीत रहने लगे।
धीरे-धीरे सभी जगह उसके आंतक की चर्चा होने लगी।
युद्ध में उसने देवताओं को भी परास्त करना प्रारम्भ कर दिया।
जहां वह जाता मृ्त्यु का तांडव होने लगता। उसने सभी और पूजा पाठ बन्द करवा दिए।
अत्यन्त परेशान होने के बाद सभी देव भगवान शिव की शरण में गए।
भगवान शिव ने सभी को आश्वासन दिलाया की वे इस का उपाय निकालेगें। भगवान शिव ने राक्षस को नष्ट कर दिया।
भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रुप में विराजित हो़।
उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया। और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रुप में आज भी यहां विराजित है।
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