% Gyan.Gurucool -
chat-robot

LYRIC

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) कथा

Shri Nageshwar Jyotirlinga

 

 

 

स्थापना

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) मंदिर एक हिन्दूओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है यह मंदिर पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित है। श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga)  गुजरात के जिले जामनगर में द्वारका धाम से 17 किलोमीटर के दूरी पर स्थित है।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) मंदिर में स्थित ज्योति लिंग भगवान शिव के 12 ज्योति लिंग में से है तथा 12 ज्योति लिंगों में से नागेश्वर को दसवां ज्योति लिंग माना जाता है।

हिन्दू धर्म के अनुसार नागेश्वर अर्थात नागों का ईश्वर होता है।
शास्त्रों में भगवान शिव के इस ज्योति लिंग के दर्शनों की बड़ी महिमा बताई गई है।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) मंदिर के पुनः निर्माण 1996 में सुपर केसेट्स इंडस्ट्री के मालिक स्वर्गीय श्री गुलशन कुमार ने करवाया था।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के कार्य के बीच में ही श्री गुलशन कुमार मृत्यु हो जाने के कारण उनके परिवार ने इस मंदिर का कार्य पूर्ण करवाया था।
(Shri Nageshwar Jyotirlinga) मंदिर के पुनः निर्माण के कार्य की लागत गुलशन कुमार चेरिटेबल ट्रस्ट ने दिया था।
मंदिर के विशेषता यहां स्थापित भगवान शंकर की प्रतिमा है जो लगभग 125 फीट ऊँची तथा 25 फीट चौड़ी है।
श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) मंदिर के अन्दर एक गर्भगृह है जो सभामंड़प से निचले स्तर पर स्थित है।
श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) गर्भगृह में ही भगवान शंकर का लिंग स्थापित है।
अगर किसी व्यक्ति को अभिषेक करवाना होता है तो केवल पुरुष को धोती पहन कर प्रवेश कर सकता है।
मात्र दर्शन हेतु को भी पुरुष व महिला भारतीय पोशाक में गर्भगृह में जा सकता है।
मंदिर में श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) मध्यम बड़े आकार का है जिसके ऊपर एक चांदी का आवरण चढ़ा है।

(Shri Nageshwar Jyotirlinga) कथा

दारूका नाम की एक प्रसिद्ध राक्षसी थी, जो पार्वती जी से वरदान प्राप्त कर अहंकार में चूर रहती थी।
उसका पति दरुका महान् बलशाली राक्षस था। उसने बहुत से राक्षसों को अपने साथ लेकर समाज में आतंक फैलाया हुआ था।

वह यज्ञ आदि शुभ कर्मों को नष्ट करता हुआ सन्त-महात्माओं का संहार करता था। वह प्रसिद्ध धर्मनाशक राक्षस था।
पश्चिम समुद्र के किनारे सभी प्रकार की सम्पदाओं से भरपूर सोलह योजन विस्तार पर उसका एक वन था, जिसमें वह निवास करता था।

दारूका जहाँ भी जाती थी, वृक्षों तथा विविध उपकरणों से सुसज्जित वह वनभूमि अपने विलास के लिए साथ-साथ ले जाती थी।
महादेवी पार्वती ने उस वन की देखभाल का दायित्त्व दारूका को ही सौंपा था,
जो उनके वरदान के प्रभाव से उसके ही पास रहता था।
उससे पीड़ित आम जनता ने महर्षि और्व के पास जाकर अपना कष्ट सुनाया।

शरणागतों की रक्षा का धर्म पालन करते हुए महर्षि और्व ने राक्षसों को शाप दे दिया।
उन्होंने कहा कि जो राक्षस इस पृथ्वी पर प्राणियों एक बार धर्मात्मा और सदाचारी सुप्रिय नामक शिव भक्त वैश्य था।

जब वह नौका पर सवार होकर समुद्र में जलमार्ग से कहीं जा रहा था,
उस समय दरूक नामक एक भयंकर बलशाली राक्षस ने उस पर आक्रमण कर दिया।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

राक्षस दारूक ने सभी लोगों सहित सुप्रिय का अपहरण कर लिया
और अपनी पुरी में ले जाकर उसे बन्दी बना लिया।
चूँकि सुप्रिय शिव जी का अनन्य भक्त थे, इसलिए वह हमेशा शिवजी की आराधना में तन्मय से लगे रहते थे।
कारागार में भी उनकी आराधना बन्द नहीं हुई |

उन्होंने अपने अन्य साथियों को भी शिवजी की आराधना के प्रति जागरूक कर दिया।
वे सभी शिवभक्त बन गये। कारागार में शिवभक्ति का ही बोल-बाला हो गया।की हिंसा
और यज्ञों का विनाश करेगा, उसी समय वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठेगा।

महर्षि और्व द्वारा दिये गये शाप की सूचना जब देवताओं को मालूम हुई,
तब उन्होंने दुराचारी राक्षसों पर चढ़ाई कर दी।
राक्षसों पर भारी संकट आ पड़ा।
यदि वे युद्ध में देवताओं को मारते हैं, तो शाप के कारण स्वयं मर जाएँगे और यदि उन्हें नहीं मारते हैं, तो पराजित होकर स्वयं भूखों मर जाएँगे।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

उस समय दारूका ने राक्षसों को सहारा दिया और भवानी के वरदान का प्रयोग करते हुए वह सम्पूर्ण वन को लेकर समुद्र में जा बसी।
इस प्रकार राक्षसों ने धरती को छोड़ दिया और निर्भयतापूर्वक समुद्र में निवास करते हुए वहाँ भी प्राणियों को सताने लगे।

जब इसकी सूचना राक्षस दारूक को मिली, तो वह क्रोध में उबल उठा।
उसने देखा कि कारागार में सुप्रिय ध्यान लगाए बैठा है, तो उसे डाँटते हुए बोला- वैश्य! तू आँखें बन्द करके मेरे विरुद्ध कौनसा षड्यन्त्र रच रहा है?
वह जोर-जोर से चिल्लाता हुआ धमका रहा था, इसका उस पर कुछ भी प्रभाव न पड़ा।

घमंडी राक्षस दारूक ने अपने अनुचरों को आदेश दिया कि इस शिवभक्त को मार डालो।
अपनी हत्या के भय से भी सुप्रिय डरे नहीं और वह भयहारी, संकटमोचक भगवान शिव को पुकारने में ही लगे रहे।
देव! आप ही हमारे सर्वस्व हैं, आप ही मेरे जीवन और प्राण हैं।

इस प्रकार सुप्रिय वैश्य की प्रार्थना को सुनकर भगवान शिव एक बिल से प्रकट हो गये।
उनके साथ ही चार दरवाजों का एक सुन्दर मन्दिर प्रकट हुआ।

उस मन्दिर के मध्यभाग में (गर्भगृह) में एक दिव्य श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) प्रकाशित हो रहा था
तथा शिव परिवार के सभी सदस्य भी उसके साथ विद्यमान थे। वैश्य सुप्रिय ने शिव परिवार सहित उस ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन किया।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

सुप्रिय के पूजन से प्रसन्न भगवान शिव ने स्वयं पाशुपतास्त्र लेकर प्रमुख राक्षसों को व उनके अनुचरों को तथा उनके सारे संसाधनों अस्त्र-शस्त्र को नष्ट कर दिया।

लीला करने के लिए स्वयं शरीर धारण करने वाले भगवान शिव ने अपने भक्त सुप्रिय आदि की रक्षा करने के बाद उस वन को भी यह वर दिया कि,
आज से इस वन में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र, इन चारों वर्णों के धर्मों का पालन किया जाएगा।
इस वन में शिव धर्म के प्रचारक श्रेष्ठ ऋषि-मुनि निवास करेंगे और यहाँ तामसिक दुष्ट राक्षसों के लिए कोई स्थान न होगा।

राक्षसों पर आये इसी भारी संकट को देखकर राक्षसी दारूका ने दीन भाव से देवी पार्वती की स्तुति की।
उसकी प्रार्थना से प्रसन्न माता पार्वती ने पूछा- बताओ, मैं तेरा कौनसा प्रिय कार्य करूँ?
दारूका ने कहा- माँ! आप मेरे कुल की रक्षा करें।

पार्वती ने उसके कुल की रक्षा का आश्वासन देते हुए भगवान शिव से कहा: नाथ! आपकी कही हुई बात इस युग के अन्त में सत्य होगी,
तब तक यह तामसिक सृष्टि भी चलती रहे, ऐसा मेरा विचार है।

माता पार्वती शिव से आग्रह करती हुईं बोलीं कि, मैं भी आपके आश्रय में रहने वाली हूँ, आपकी ही हूँ,
इसलिए मेरे द्वारा दिये गये वचन को भी आप प्रमाणित करें।

यह राक्षसी दारूका राक्षसियों में बलिष्ठ, मेरी ही शक्ति तथा देवी है।
इसलिए यह राक्षसों के राज्य का शासन करेगी।
ये राक्षसों की पत्नियाँ अपने राक्षसपुत्रों को पैदा करेगी, जो मिल-जुल कर इस वन में निवास करेंगे-ऐसा मेरा विचार है।

श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कथा

माता पार्वती के उक्त प्रकार के आग्रह को सुनकर भगवान शिव ने उनसे कहा: प्रिय! तुम मेरी भी बात सुनो।
मैं भक्तों का पालन तथा उनकी सुरक्षा के लिए प्रसन्नतापूर्वक इस वन में निवास करूँगा।
जो मनुष्य वर्णाश्रम धर्म का पालन करते हुए श्रद्धा-भक्ति पूर्वक मेरा दर्शन करेगा, वह चक्रवर्ती राजा बनेगा।

कलियुग के अन्त में तथा सत युग के प्रारम्भ में महासेन का पुत्र वीरसेन राजाओं का महाराज होगा।
वह मेरा परम भक्त तथा बड़ा पराक्रमी होगा।
जब वह इस वन में आकर मेरा दर्शन करेगा।
उसके बाद वह चक्रवर्ती सम्राट हो जाएगा।

तत्पश्चात् बड़ी-बड़ी लीलाएँ करने वाले शिव-दम्पत्ति ने आपस में हास्य-विलास की बातें की और वहीं पर स्थित हो गये।
इस प्रकार शिवभक्तों के प्रिय ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान शिव श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) कहलाये और पार्वती देवी भी नागेश्वरी के नाम से विख्यात हुईं।

इस प्रकार शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए हैं, जो तीनों लोकों की कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं।
श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga) के दर्शन करने के बाद जो मनुष्य उसकी उत्पत्ति और माहात्म्य सम्बन्धी कथा को सुनता है,
वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है
तथा सम्पूर्ण भौतिक और आध्यात् सुखों को प्राप्त करता है।

 

 

Your email address will not be published. Required fields are marked *