Upmanyu ki katha : गुरुभक्त उपमन्यु की कथा - Gyan.Gurucool
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upmanyu ki katha

(upmanyu ki katha ka mehtav)\उपमन्यु की कथा का महत्व

महर्षि आयोद धौम्य अपनी विद्या, तपस्या और विचित्र उदारता के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं।
वे ऊपर से तो अपने शिष्यों से बहुत कठोरता करते प्रतीत होते हैं, किन्तु भीतर से
शिष्यों पर उनका अपार स्नेह था।
वे अपने शिष्यों को अत्यंत सुयोग्य बनाना चाहते थे।

(upmanyu ki katha)उपमन्यु की कथा

इसलिए जो ज्ञान के सच्चे जिज्ञासु थे, वे महर्षि के पास बड़ी श्रद्धा से रहते थे।
महर्षि के शिष्यों में एक बालक का नाम था उपमन्यु। गुरुदेव ने उपमन्यु को अपनी गाएं चराने का काम दे रखा था।
वे दिनभर वन में गाएं चराते और सायँकाल आश्रम में लौट आया करते।
एक दिन गुरुदेव ने पूछा- ‘बेटा उपमन्यु! तुम आजकल भोजन क्या करते हो?’

(upmanyu ki katha)उपमन्यु ने नम्रता से कहा- ‘भगवन्‌! मैं भिक्षा माँगकर अपना काम चला लेता हूँ।’
महर्षि बोले- ‘वत्स! ब्रह्मचारी को इस प्रकार भिक्षा का अन्न नहीं खाना चाहिए।
भिक्षा माँगकर जो कुछ मिले, उसे गुरु के सामने रख देना चाहिए।
उसमें से गुरु यदि कुछ दें तो उसे ग्रहण करना चाहिए।’

(upmanyu ki katha)उपमन्यु ने महर्षि की आज्ञा स्वीकार कर ली। अब वे भिक्षा माँगकर जो कुछ मिलता उसे गुरुदेव के सामने लाकर रख देते।
गुरुदेव को तो शिष्य की श्रद्धा को दृढ़ करना था, अतः वे भिक्षा का सभी अन्न रख लेते। उसमें से कुछ भी उपमन्यु को नहीं देते।

थोड़े दिनों बाद जब गुरुदेव ने पूछा- ‘उपमन्यु! तुम आजकल क्या खाते हो?’ तब उपमन्यु ने बताया कि ‘मैं एक बार की भिक्षा का अन्न गुरुदेव को देकर दुबारा अपनी भिक्षा माँग लाता हूँ।’ महर्षि ने कहा- ‘दुबारा भिक्षा माँगना तो धर्म के विरुद्ध है। इससे गृहस्थों पर अधिक भार पड़ेगा। और दूसरे भिक्षा माँगने वालों को भी संकोच होगा। अब तुम दूसरी बार भिक्षा माँगने मत जाया करो।’

गुरुभक्त उपमन्यु की कथा

(upmanyu ki katha)उपमन्यु ने कहा- ‘जो आज्ञा!’ उसने दूसरी बार भिक्षा माँगना बंद कर दिया।
जब कुछ दिनों बाद महर्षि ने फिर पूछा तब उपमन्यु ने बताया कि ‘मैं गायों का दूध पी लेता हूँ।’ महर्षि बोले- ‘यह तो ठीक नहीं।’ गाएं जिसकी होती हैं,
उनका दूध भी उसी का होता है। मुझसे पूछे बिना गायों का दूध तुम्हें नहीं पीना चाहिए।’

उपमन्यु ने दूध पीना भी छोड़ दिया। थोड़े दिन बीतने पर गुरुदेव ने पूछा- ‘उपमन्यु! तुम दुबारा भिक्षा भी नहीं लाते और गायों का दूध भी नहीं पीते तो खाते क्या हो?
तुम्हारा शरीर तो उपवास करने वाले जैसा दुर्बल नहीं दिखाई पड़ता।’ उपमन्यु ने कहा- ‘भगवन्‌! मैं बछड़ों के मुख से जो फेन गिरता है,
उसे पीकर अपना काम चला लेता हूँ।’

महर्षि बोले- ‘बछड़े बहुत दयालु होते हैं। वे स्वयं भूखे रहकर तुम्हारे लिए अधिक फेन गिरा देते होंगे।
तुम्हारी यह वृत्ति भी उचित नहीं है।’ अब उपमन्यु उपवास करने लगे। दिनभर बिना कुछ खाए गायों को चराते हुए उन्हें वन में भटकना पड़ता था।
अंत में जब भूख असह्य हो गई, तब उन्होंने आक के पत्ते खा लिए। उन विषैले पत्तों का विष शरीर में फैलने से वे अंधे हो गए। उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता था।

गायों की पदचाप सुनकर ही वे उनके पीछे चल रहे थे। मार्ग में एक सूखा कुआँ था, जिसमें (upmanyu ki katha)उपमन्यु गिर पड़े।
जब अंधेरा होने पर सब गाएं लौट आईं और उपमन्यु नहीं लौटे, तब महर्षि को चिंता हुई।
वे सोचने लगे- मैंने उस भोले बालक का भोजन सब प्रकार से बंद कर दिया। कष्ट पाते-पाते दुखी होकर वह भाग तो नहीं गया।
‘ उसे वे जंगल में ढूँढने निकले और बार-बार पुकारने लगे- ‘बेटा उपमन्यु! तुम कहाँ हो?’

गुरुभक्त उपमन्यु की कथा

(upmanyu ki katha)उपमन्यु ने कुएँ में से उत्तर दिया- ‘भगवन्‌! मैं कुएँ में गिर पड़ा हूँ।’
महर्षि समीप आए और सब बातें सुनकर ऋग्वेद के मंत्रों से उन्होंने अश्विनीकुमारों की स्तुति करने की आज्ञा दी।
स्वर के साथ श्रद्धापूर्वक जब उपमन्यु ने स्तुति की, तब देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमार वहाँ कुएँ में प्रकट हो गए।
उन्होंने उपमन्यु के नेत्र अच्छे करके उसे एक पदार्थ देकर खाने को कहा।

किन्तु(upmanyu ki katha) उपमन्यु ने गुरुदेव को अर्पित किए बिना वह पदार्थ खाना स्वीकार नहीं किया।
अश्विनी कुमारों ने कहा- ‘तुम संकोच मत करो। तुम्हारे गुरु ने भी अपने गुरु को अर्पित किए बिना पहले हमारा दिया पदार्थ प्रसाद मानकर खा लिया था।’

(upmanyu ki katha)उपमन्यु ने कहा- ‘वे मेरे गुरु हैं, उन्होंने कुछ भी किया हो, पर मैं उनकी आज्ञा नहीं टालूँगा।’
इस गुरुभक्ति से प्रसन्न होकर अश्विनी कुमारों ने उन्हें समस्त विद्याएँ बिना पढ़े आ जाने का आशीर्वाद दिया।
जब उपमन्यु कुएँ से बाहर निकले, महर्षि आयोद धौम्य ने अपने प्रिय शिष्य को हृदय से लगा लिया।

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