The Amazing Purpose of Vat savitri Vrat Katha 2023 | वटसावित्री व्रत कथा का उदेश्य - Gyan.Gurucool
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Vat savitri fasting story \ Vat savitri Vrat Katha

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(Vat savitri Vrat Katha ) इस घटना की जानकारी के बाद ऋषि नारद जी ने अश्वपति से सत्यवान की अल्प आयु के बारे में बताया।
माता-पिता ने बहुत समझाया, परन्तु सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी।
जिनके जिद्द के आगे राजा को झुकना पड़ा।

सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सत्यवान बड़े गुणवान, धर्मात्मा और बलवान थे।
वे अपने माता-पिता का पूरा ख्याल रखते थे। सावित्री राजमहल छोड़कर जंगल की कुटिया में आ गई थीं,
उन्होंने वस्त्राभूषणों का त्याग कर अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करती रहती थी।

सत्यवान् की मृत्यु का दिन निकट आ गया। नारद ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था।
समय नजदीक आने से सावित्री अधीर होने लगीं।
उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि के कहने पर पितरों का पूजन किया।

प्रत्येक दिन की तरह सत्यवान भोजन बनाने के लिए जंगल में लकड़ियां काटने जाने लगे, तो सावित्री उनके साथ गईं।

वह सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था। सत्यवान लकड़ी काटने पेड़ पर चढ़े, लेकिन सिर चकराने की वजह से नीचे उतर आये।
सावित्री पति का सिर अपनी गोद में रखकर उन्हें सहलाने लगीं। तभी यमराज आते दिखे जो सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे।
सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगीं।

उन्होंने बहुत मना किया परंतु सावित्री ने कहा, जहां मेरे पतिदेव जाते हैं, वहां मुझे जाना ही चाहिये।
बार-बार मना करने के बाद भी सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं।
सावित्री की निष्ठा और पति परायणता को देखकर यम ने एक-एक करके वरदान में सावित्री के अंधे सास-ससुर को आंखें दी,
उसका खोया हुआ राज्य दिया और सावित्री को देखने के लिए कहा। वह लौटे कैसे? सावित्री के प्राण तो यमराज लिये जा रहे थे।

सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।

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Vat savitri ne vardaan mange \ सावित्री ने वरदान मांगे

1) सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं,
उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ।
लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं।
यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। (vatsavitri)सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है।
पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा।

2) सावित्री बोलीं हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें।
यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ।
लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं।

यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा।
3) इस पर (vatsavitri)सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा।
यमराज ने इसका वरदान भी (vatsavitri)सावित्री को दे दिया।

(vatsavitri)सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं
और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है।
यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े।
यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।

सत्यवान जीवंत हो गया और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े।
दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है।
इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।

यमराज ने फिर कहा कि सत्यवान् को छोडकर चाहे जो मांगना चाहे मांग सकती हो, इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्यवती का वरदान मांगा।
यम ने बिना विचारे प्रसन्न होकर तथास्तु बोल दिया।
वचनबद्ध यमराज आगे बढ़ने लगे। सावित्री ने कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं
और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है।
यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। (vatsavitri)सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं,जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।

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(Significance of Vat savitri Vrat Katha)सावित्री व्रत का महत्व

सत्यवान जीवित हो गए, माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई और उनका राज्य भी वापस मिल गया।
इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।
अतः पतिव्रता (vatsavitri)सावित्री की तरह ही अपने सास-ससुर का उचित पूजन करने के साथ ही अन्य विधियों को प्रारंभ करें। (vatsavitri)वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से व्रत रखने वाले के वैवाहिक जीवन के सभी संकट टल जाते हैं।

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