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विवाह पंचमी व्रत कथा (vivah panchami vrat katha)
(Significance of Vivah Panchami)\ विवाह पंचमी का महत्व
पौराणिक धार्मिक ग्रथों में मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को भगवान राम ने माता सीता के साथ विवाह किया था|
अतः इस तिथि को श्रीराम (vivah panchami)विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है|
इसको (vivah panchami)विवाह पंचमी भी कहते हैं| इस दिन भगवान् राम और माता सीता का विवाह करवाना बहुत शुभ माना जाता है|
(vivah panchami) विवाह पंचमी का दिन हिन्दू धर्म में बहुत मायने रखता है, क्योंकि इसी दिन जानकी और श्री राम का शुभ विवाह संपन्न हुआ था।
यह दिन भारत में एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
श्री राम और जानकी सीता के विवाह की वर्षगांठ के तौर पर (vivah panchami)विवाह पंचमी का उत्सव मनाया जाता है।
भगवान् राम ने माता सीता से विवाह किया था जिसका वर्णन श्रीरामचरितमानस में महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने रोचक तरीके से किया है|
(vivah panchami story)\विवाह पंचमी कथा
इस पर्व को मिथिलांचल और नेपाल में बहुत उत्साह और आस्था से मनाया जाता है।
इस दिन अयोध्या और जनकपुर में प्रभु राम की बारात विशेष तैयारियों के साथ निकाली जाती है।
(vivah panchami)विवाह पंचमी को लेकर कई पुराणों में इसका विशेष महत्व है,
बावजूद इसके इस दिन कई जगहों पर(vivah panchami) शुभ विवाह के मांगलिक कार्य संपन्न नहीं किए जाते हैं
यानी कि लोग अपने बेटी का विवाह इस दिन करना उचित नहीं मानते हैं।
इस दिन त्योहार तो मनाया जाता है, लेकिन माता सीता के दुखद वैवाहिक जीवन को देखते हुए इस दिन विवाह निषेध होते हैं।
शास्त्रों की मानें तो भौगोलिक रूप से सीता मिथिला की बेटी कहलाई जाती है।
इसलिए भी मिथिलावासी सीता के दुख और कष्टों को लेकर अतिरिक्त रूप से संवेदनशील हैं।
पौराणिक विवाह पंचमी कि व्रत कथा
14 वर्ष वनवास के बाद भी गर्भवती सीता का श्रीराम ने परित्याग कर दिया था।
इस तरह राजकुमारी सीता को महारानी सीता का सुख नहीं मिला।
माता सीता का आगे का सारा जीवन अपने जुड़वां बच्चों लव और कुश के साथ वन में ही बीता।
इसीलिए (vivah panchami)विवाह पंचमी के दिन लोग अपनी बेटियों का विवाह नहीं करते हैं।
सिर्फ इतना ही नहीं,(vivah panchami) विवाह पंचमी पर की जाने वाली रामकथा का अंत राम और सीता के विवाह पर ही हो जाता है।
क्योंकि दोनों के जीवन के आगे की कथा दुखों और कष्टों से भरी है और इस शुभ दिन सुखांत करके ही कथा का समापन कर दिया जाता है।
दोनों ने समाज में आदर्श और मर्यादित जीवन की मिसाल कायम करने के लिए मानव अवतार लिया।
अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को राम-सीता का विवाहमिथिलांचल में संपन्न हुआ था।

(Shri Ram-Sita marriage story)\श्री राम-सीता विवाह कथा
पुराणों में वर्णन है कि राम-सीता श्री विष्णु और लक्ष्मी के अवतार हैं।
राजा दशरथ के घर पैदा हुए राम और राजा जनक की पुत्री है सीता।
बताया जाता है कि सीता का जन्म धरती से हुआ है।
जब जनक हल चला रहे थे, तब उन्हें एक नन्हीं-सी बच्ची मिली थी।
इसे ही नाम दिया गया सीता, यही जनकनंदिनी कहलाईं।
मान्यता है कि एक बार बचपन में सीता ने मंदिर में रखे धनुष को बड़ी सहजता से उठा लिया।
उस धनुष को तब तक परशुराम के अतिरिक्त और किसी ने उठाया नहीं था।
तब राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो कोई शिव का यह धनुष उठा पाएगा,
उसी से सीता का विवाह किया जाएगा।
उस समय भगवान राम और लक्ष्मण महर्षि वशिष्ठ के साथ दर्शक के रूप में उस स्वयंवर में पहुंचे थे।
कई राजाओं ने प्रयास किए, लेकिन कोई भी उस धनुष को अपनी जगह हिला न सका, उस पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो बहुत दूर की बात थी।
Vivah panchami story
तब महर्षि वशिष्ठ ने श्री राम को इस स्वयंवर में भाग लेने का आदेश दिया।
अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान श्री राम ने धनुष उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे कि धनुष टूट गया।
इस तरह उन्होंने(vivah panchami) स्वयंवर की शर्त को पूरा किया और सीता से विवाह के लिए योग्य पाए गए।
भारतीय जनमानस में राम और सीता प्रेम, समर्पण, और आदर्श के परिचायक पति-पत्नी हैं।
इसलिए भी हमारे समाज में राम और सीता को आदर्श पति-पत्नी के रूप में स्वीकारा और पूजा जाता हैं,
क्योंकि इतिहास-पुराण में श्री राम जैसा कोई पुत्र, भाई, योद्धा और राजा नहीं हुआ।
उसी तरह इतिहास में सीता-सी कोई पुत्री, पत्नी, मां, बहू नहीं हुई।
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