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Brahma Ji Ki Aarti
ब्रह्मा (Brahma) हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। ये हिन्दुओं के तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। सृष्टि रचियता से मतलब सिर्फ जीवों की सृष्टि से है।
ब्रह्मा(Brahma) को विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ कहते हैं। पुराणों में जो ब्रह्मा का रूप वर्णित मिलता है वह वैदिक प्रजापति के रूप का विकास है। पुराणों ने इनकी कहानी को मिथकरूप में लिखा।
पुराणों के अनुसार क्षीरसागर में शेषशायी विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा (Brahma) की स्वयं उत्पत्ति हुई, इसलिए ये स्वयंभू कहलाते हैं। पुराणों के अनुसार इनके चार मुख हैं।
इनकी पत्नी का नाम सावित्री और इनकी पुत्री सरस्वती थी। इनका वाहन हंस है। भगवान विष्णु की प्रेरणा से सरस्वती देवी ने ब्रह्मा (Brahma) जी को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान कराया।
सभी देवता उनके पौत्र माने गए हैं, अत: वे पितामह के नाम से प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मा (Brahma) जी देवता, दानव तथा सभी जीवों के पितामह हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार उनके चार मुख हैं। वे अपने चार हाथों में क्रमश: वरमुद्रा, अक्षरसूत्र, वेद तथा कमण्डलु धारण किए हैं।
source – peakpx
ब्रम्हा जी की आरती
पितु मातु सहायक स्वामी सखा,तुम ही एक नाथ हमारे हो ।
जिनके कुछ और आधार नहीं,तिनके तुम ही रखवारे हो ।
सब भॉति सदा सुखदायक हो,दुख निर्गुण नाशन हरे हो ।
प्रतिपाल करे सारे जग को,अतिशय करुणा उर धारे हो ।
भूल गये हैं हम तो तुमको,तुम तो हमरी सुधि नहिं बिसारे हो ।
उपकारन को कछु अंत नहीं,छिन्न ही छिन्न जो विस्तारे हो ।
महाराज महा महिमा तुम्हारी,मुझसे विरले बुधवारे हो ।
शुभ शांति निकेतन प्रेम निधि,मन मंदिर के उजियारे हो ।
इस जीवन के तुम ही जीवन हो,इन प्राणण के तुम प्यारे हो में ।
तुम सों प्रभु पये “कमल” हरि,केहि के अब और सहारे हो ।
Brahma Ji Ki Aarti
Pitu Matu sahayak swami sakha, tum hi ek nath hamare ho.
Jinke kuch aur aadhar nahi, tinke tum hi rakhware ho.
Sab bhakti sada sukhdayak ho, dukh nirgun nashan hare ho.
Pratipal kare sare jag ko, atishay karuna ur dhare ho.
Bhool gaye hain hum to tumko, tum to hamari sudhi nahi bissare ho.
Upkaran ko kachu ant nahi, chhin hi chhin jo vistarare ho.
Maharaj maha mahima tumhari, mujhse virale budhware ho.
Shubh shanti niketan prem nidhi, man mandir ke ujiyare ho.
Is jeevan ke tum hi jeevan ho, in pranano ke tum pyare ho mein.
Tum so prabhu paye “kamal” hari, kehi ke ab aur sahare ho.
पुराणों अनुसार ब्रह्मा (Brahma) जी के मानस पुत्र:- मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि, मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुषठ से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु, ध्यान से चित्रगुप्त आदि।
पुराणों में उनके पुत्रों को ‘ब्रह्म आत्मा वै जायते पुत्र:’ ही कहा गया है। (Brahma) ब्रह्मा ने सर्वप्रथम जिन चार-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार पुत्रों का सृजन किया उनकी सृष्टि रचना के कार्य में कोई रुचि नहीं थी वे ब्रह्मचर्य रहकर ब्रह्म तत्व को जानने में ही मगन रहते थे।
इन वीतराग पुत्रों के इस निरपेक्ष व्यवहार पर उनको महान क्रोध उत्पन्न हुआ। उनके उस क्रोध से एक प्रचंड ज्योति ने जन्म लिया। उस समय क्रोध से जलते उनके मस्तक से अर्धनारीश्वर रुद्र उत्पन्न हुआ। उन्होनें उस अर्ध-नारीश्वर रुद्र को स्त्री और पुरुष दो भागों में विभक्त कर दिया। पुरुष का नाम ‘का’ और स्त्री का नाम ‘या’ रखा।
प्रजापत्य कल्प में उन्होनें रुद्र रूप को ही स्वायंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया। इन दोनों ने ही प्रियव्रत, उत्तानपाद, प्रसूति और आकूति नाम की संतानों को जन्म दिया। फिर आकूति का विवाह रुचि से और प्रसूति का विवाह दक्ष से किया गया।
दक्ष ने प्रसूति से 24 कन्याओं को जन्म दिया। इसके नाम श्रद्धा, लक्ष्मी, पुष्टि, धुति, तुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शान्ति, ऋद्धि, और कीर्ति है। तेरह का विवाह धर्म से किया और फिर भृगु से ख्याति का, शिव से सती का, मरीचि से सम्भूति का, अंगिरा से स्मृति का, पुलस्त्य से प्रीति का पुलह से क्षमा का, कृति से सन्नति का, अत्रि से अनसूया का, वशिष्ट से ऊर्जा का, वह्व से स्वाह का तथा पितरों से स्वधा का विवाह किया। आगे आने वाली सृष्टि इन्हीं से विकसित हुई।

ब्रह्मा (Brahma) हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। ये हिन्दुओं के तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है।
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