भगवान गणेश (Ganesh) जी को भारतीय धर्म और संस्कृति में प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता। सभी मांगलिक कार्य में पहले गजानन जी की स्थापना और स्तुति की जाती है। उनकी माता का नाम पार्वती और पिता का नाम शिव। भाई कार्तिकेय और बहन अशोक सुंदरी है।
उनकी पत्नी प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि और सिद्धि हैं। सिद्धि से ‘क्षेम’ और ऋद्धि से ‘लाभ’ नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है। शुभ और लाभ के पुत्र आमोद और प्रमोद हैं।
गजानन जी निराकार दिव्यता हैं जो भक्त के उपकार हेतु एक अलौकिक आकार में स्थापित हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। गण का अर्थ है समूह। यह पूरी सृष्टि परमाणुओं और अलग अलग ऊर्जाओं का समूह है। यदि कोई सर्वोच्च नियम इस पूरी सृष्टि के भिन्न-भिन्न संस्थाओं के समूह पर शासन नहीं कर रहा होता तो इसमें बहुत उथल-पुथल हो जाती।
इन सभी परमाणुओं और ऊर्जाओं के समूह के स्वामी हैं गजानन जी। वे ही वह सर्वोच्च चेतना हैं जो सर्वव्यापी है और इस सृष्टि में एक व्यवस्था स्थापित करती है।
Source – Unsplash
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
Jai Ganesh, Jai Ganesh,Jai Ganesh Deva।
Mata Jaki Parvati,Pita Mahadeva॥ x2
Ekadanta Dayavanta,Char Bhujadhaari।
Mathe Par Tilak Sohe,Muse Ki Savari॥ x2
(Mathe Par Sindoor Sohe,Muse Ki Savari॥ x2)
Paan Charhe, Phool Charhe,Aur Charhe Meva।
(Haar Charhe, Phool Charhe,Aur Charhe Meva।)
Ladduan Ka Bhog Lage,Sant Karein Seva॥ x2
Jai Ganesh, Jai Ganesh,Jai Ganesh Deva।
Mata Jaki Parvati,Pita Mahadeva॥ x2
Andhe Ko Aankh Deta,Korhina Ko Kaya।
Banjhana Ko Putra Deta,Nirdhana Ko Maya॥ x2
‘Soora’ Shyama Sharana Aaye,Saphal Kije Seva।
Mata Jaki Parvati,Pita Mahadeva॥ x2
(Deenana Ki Laaj Rakho,Shambhu Sutavari।
Kaamana Ko Poorna KaroJaga Balihari॥ x2)
Jai Ganesh, Jai Ganesh,Jai Ganesh Deva।
Mata Jaki Parvati, Pita Mahadeva॥ x2
गजानन की छोटी-छोटी आंखे हर छोटी से छोटी चीज को देख लेती है। साथ ही उनके बड़े-बड़े कान ज्यादा सुनने और कम बोलने पर बल देते है। उनका लम्बोदर स्वरुप का भी अर्थ है।
लम्बोदर का अर्थ होता है लम्बा उदर। उनके इस स्वरुप का प्रतीकात्मक अर्थ है कि हमें सभी अच्छी-बुरी बातों को पचा लेना चाहिए। बप्पा के दो दांत हैं, एक खंडित और दूसरा अखंडित। खंडित दांत से आशय बुध्दि से है और अखंडित दांत श्रध्दा का प्रतीक है। कहने का तात्पर्य यह है कि बुध्दि भले ही भ्रमित हो जाए, किन्तु श्रध्दा कभी भी खंडित नहीं होनी चाहिए।
आदि शंकराचार्य जी ने उनके सार का बहुत ही सुंदरता से विवरण किया है। हालांकि, उनकी पूजा हाथी के सिर वाले भगवान के रूप में होती है, लेकिन यह आकार या स्वरुप वास्तव में उस निराकार, परब्रह्म रूप को प्रकट करता है।वे ‘अजं निर्विकल्पं निराकारमेकम’ हैं।
अर्थात, वे अजं (अजन्मे) हैं, निर्विकल्प (बिना किसी गुण के) हैं, निराकार (बिना किसी आकार के) हैं और वे उस चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी है। गणेश (Ganesh) जी वही ऊर्जा हैं जो इस सृष्टि का कारण है। यह वही ऊर्जा है, जिससे सब कुछ प्रकट होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है।
उनका बड़ा पेट उदारता और संपूर्ण स्वीकार को दर्शाता है। गणेश जी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे। गणेश जी एकदंत हैं, जिसका अर्थ है एकाग्रता।
वह सभी बाधाओं को दूर करते हैं और इसलिए, किसी भी शुभ अवसरों जैसे शादी, प्रसव, एक घर या इमारत खरीदना या यहां तक कि यात्रा को भी शुरू करने पहले, श्री गणेश का नाम लिया जाता है, उसके बाद ही अन्य अनुष्ठान या कार्य शुरू किए जाते हैं। वे बहुत बुद्धिमान है और लोगों के भक्ति और श्रद्धा ने उन्हें कई अलग-अलग नाम से सुशोभित किया हैं।
भगवान गणेश (Ganesh) जी को भारतीय धर्म और संस्कृति में प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता।
भगवान गणेश (Ganesh) जी को भारतीय धर्म और संस्कृति में प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता। सभी मांगलिक कार्य में पहले गजानन जी की स्थापना और स्तुति की जाती है। उनकी माता का नाम पार्वती और पिता का नाम शिव। भाई कार्तिकेय और बहन अशोक सुंदरी है।
उनकी पत्नी प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि और सिद्धि हैं। सिद्धि से ‘क्षेम’ और ऋद्धि से ‘लाभ’ नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है। शुभ और लाभ के पुत्र आमोद और प्रमोद हैं।
गजानन जी निराकार दिव्यता हैं जो भक्त के उपकार हेतु एक अलौकिक आकार में स्थापित हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। गण का अर्थ है समूह। यह पूरी सृष्टि परमाणुओं और अलग अलग ऊर्जाओं का समूह है। यदि कोई सर्वोच्च नियम इस पूरी सृष्टि के भिन्न-भिन्न संस्थाओं के समूह पर शासन नहीं कर रहा होता तो इसमें बहुत उथल-पुथल हो जाती।
इन सभी परमाणुओं और ऊर्जाओं के समूह के स्वामी हैं गजानन जी। वे ही वह सर्वोच्च चेतना हैं जो सर्वव्यापी है और इस सृष्टि में एक व्यवस्था स्थापित करती है।
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जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
Jai Ganesh, Jai Ganesh,Jai Ganesh Deva।
Mata Jaki Parvati,Pita Mahadeva॥ x2
Ekadanta Dayavanta,Char Bhujadhaari।
Mathe Par Tilak Sohe,Muse Ki Savari॥ x2
(Mathe Par Sindoor Sohe,Muse Ki Savari॥ x2)
Paan Charhe, Phool Charhe,Aur Charhe Meva।
(Haar Charhe, Phool Charhe,Aur Charhe Meva।)
Ladduan Ka Bhog Lage,Sant Karein Seva॥ x2
Jai Ganesh, Jai Ganesh,Jai Ganesh Deva।
Mata Jaki Parvati,Pita Mahadeva॥ x2
Andhe Ko Aankh Deta,Korhina Ko Kaya।
Banjhana Ko Putra Deta,Nirdhana Ko Maya॥ x2
‘Soora’ Shyama Sharana Aaye,Saphal Kije Seva।
Mata Jaki Parvati,Pita Mahadeva॥ x2
(Deenana Ki Laaj Rakho,Shambhu Sutavari।
Kaamana Ko Poorna KaroJaga Balihari॥ x2)
Jai Ganesh, Jai Ganesh,Jai Ganesh Deva।
Mata Jaki Parvati, Pita Mahadeva॥ x2
गजानन की छोटी-छोटी आंखे हर छोटी से छोटी चीज को देख लेती है। साथ ही उनके बड़े-बड़े कान ज्यादा सुनने और कम बोलने पर बल देते है। उनका लम्बोदर स्वरुप का भी अर्थ है।
लम्बोदर का अर्थ होता है लम्बा उदर। उनके इस स्वरुप का प्रतीकात्मक अर्थ है कि हमें सभी अच्छी-बुरी बातों को पचा लेना चाहिए। बप्पा के दो दांत हैं, एक खंडित और दूसरा अखंडित। खंडित दांत से आशय बुध्दि से है और अखंडित दांत श्रध्दा का प्रतीक है। कहने का तात्पर्य यह है कि बुध्दि भले ही भ्रमित हो जाए, किन्तु श्रध्दा कभी भी खंडित नहीं होनी चाहिए।
आदि शंकराचार्य जी ने उनके सार का बहुत ही सुंदरता से विवरण किया है। हालांकि, उनकी पूजा हाथी के सिर वाले भगवान के रूप में होती है, लेकिन यह आकार या स्वरुप वास्तव में उस निराकार, परब्रह्म रूप को प्रकट करता है।वे ‘अजं निर्विकल्पं निराकारमेकम’ हैं।
अर्थात, वे अजं (अजन्मे) हैं, निर्विकल्प (बिना किसी गुण के) हैं, निराकार (बिना किसी आकार के) हैं और वे उस चेतना के प्रतीक हैं, जो सर्वव्यापी है। गणेश (Ganesh) जी वही ऊर्जा हैं जो इस सृष्टि का कारण है। यह वही ऊर्जा है, जिससे सब कुछ प्रकट होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है।
उनका बड़ा पेट उदारता और संपूर्ण स्वीकार को दर्शाता है। गणेश जी का ऊपर उठा हुआ हाथ रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे। गणेश जी एकदंत हैं, जिसका अर्थ है एकाग्रता।
वह सभी बाधाओं को दूर करते हैं और इसलिए, किसी भी शुभ अवसरों जैसे शादी, प्रसव, एक घर या इमारत खरीदना या यहां तक कि यात्रा को भी शुरू करने पहले, श्री गणेश का नाम लिया जाता है, उसके बाद ही अन्य अनुष्ठान या कार्य शुरू किए जाते हैं। वे बहुत बुद्धिमान है और लोगों के भक्ति और श्रद्धा ने उन्हें कई अलग-अलग नाम से सुशोभित किया हैं।
भगवान गणेश (Ganesh) जी को भारतीय धर्म और संस्कृति में प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता।
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