Karthikeya Ki Aarti (भगवान कार्तिकेय की आरती) - Gyan.Gurucool
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शिव के पुत्र कार्तिकेय (Karthikeya) के बारे में चमत्कारी बात यह थी कि वह एक महान प्रयोग से जन्मे थे, जिसमें छह जीवों को एक शरीर में जीवन दिया गया था। पहले भी इस तरह के कई प्रयोग हुए हैं, जहां एक ही शरीर में दो योगी रहते थे। वे अलग-अलग भाषाएं बोलते थे और उनके अस्तित्व का तरीका भी अलग होता था। यह कैसे हुआ, इसके बारे में एक लंबी-चौड़ी कहानी है।शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय (Karthikeya) को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। उनके जन्म की कथा भी विचित्र है।

हालांकि शिव को पौरुष का प्रतीक माना जाता है, मगर उनकी कोई संतान नहीं थी। कहा जाता है कि कोई स्त्री उनके बीज को अपने गर्भ में धारण नहीं कर सकती थी। इसके कारण, उन्होंने अपना बीज एक हवन कुंड में डाल दिया। हवन कुंड का मतलब जरूरी नहीं है कि आग का कुंड। वह एक ‘होम कुंड’ होता है। होम कुंड ऋषियों के लिए एक प्रयोगशाला की तरह था, जहां वे कई चीजों को उत्पन्न करते थे।

Karthikeya

Karthikeya

भगवान कार्तिकेय की आरती

जय जय आरती वेणु गोपाला

वेणु गोपाला वेणु लोला
पाप विदुरा नवनीत चोरा

जय जय आरती वेंकटरमणा
वेंकटरमणा संकटहरणा
सीता राम राधे श्याम

जय जय आरती गौरी मनोहर
गौरी मनोहर भवानी शंकर
सदाशिव उमा महेश्वर

जय जय आरती राज राजेश्वरि
राज राजेश्वरि त्रिपुरसुन्दरि

महा सरस्वती महा लक्ष्मी
महा काली महा लक्ष्मी

जय जय आरती आन्जनेय
आन्जनेय हनुमन्ता

जय जय आरति दत्तात्रेय
दत्तात्रेय त्रिमुर्ति अवतार

जय जय आरती सिद्धि विनायक
सिद्धि विनायक श्री गणेश

जय जय आरती सुब्रह्मण्य

सुब्रह्मण्य कार्तिकेय ||

 

Karthikeya Ki Aarti

Jai Jai Aarti Venu Gopala
Venu Gopala Venu Lola
Paap Vidura Navneet Chora

Jai Jai Aarti Venkatramana
Venkatramana Sankatharana
Sita Ram Radhe Shyam

Jai Jai Aarti Gauri Manohar
Gauri Manohar Bhawani Shankar
Sadashiv Uma Maheshwar

Jai Jai Aarti Raaj Raajeshwari
Raaj Raajeshwari Tripurasundari

Maha Saraswati Maha Lakshmi
Maha Kaali Maha Lakshmi

Jai Jai Aarti Aanjaney
Aanjaney Hanumanta

Jai Jai Aarati Dattatrey
Dattatrey Trimurti Avtar

Jai Jai Aarti Siddhi Vinayak
Siddhi Vinayak Shri Ganesh

Jai Jai Aarti Subrahmany
Subrahmany Karthikeya

 

कार्तिकेय (Karthikeya) की पूजा मुख्यत: दक्षिण भारत में होती है। अरब में यजीदी जाति के लोग भी इन्हें पूजते हैं, ये उनके प्रमुख देवता हैं। उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षे‍त्र विशेष में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था। इनके नाम पर ही स्कंद पुराण है।

संस्कृत भाषा में लिखे गए ‘स्कंद पुराण’ के तमिल संस्करण ‘कांडा पुराणम’ में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में भगवान शिव के पुत्र मुरुगन ने दानव तारक और उसके दो भाइयों सिंहामुखम एवं सुरापदम्न को पराजित किया था। अपनी पराजय पर सिंहामुखम माफी मांगी तो मुरुगन ने उसे एक शेर में बदल दिया और अपनानी माता दुर्गा के वाहन के रूप में सेवा करने का आदेश दिया।

दक्षिण भारत की कथा के अनुसार दूसरी मुरुगन अर्थात कार्तिकेय से लड़ते हुए सपापदम्न (सुरपदम) एक पहाड़ का रूप ले लेता है। मुरुगन अपने भाले से पहाड़ को दो हिस्सों में तोड़ देते हैं। पहाड़ का एक हिस्सा मोर बन जाता है जो मुरुगन का वाहन बनता है जबकि दूसरा हिस्सा मुर्गा बन जाता है जो कि उनके झंडे पर मुरुगन का प्रतीक बन जाता है।

एक दूसरी कथा के अनुसार कार्तिकेय (Karthikeya) का जन्म 6 अप्सराओं के 6 अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे 6 अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे। भगवान कार्तिकेय (Karthikeya) 6 बालकों के रूप में जन्मे थे तथा इनकी देखभाल कृत्तिकाओं (सप्त ऋषि की पत्नियों) ने की थी, इसीलिए उन्हें कार्तिकेय (Karthikeya) धातृ भी कहते हैं।

आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि और ‘तिथितत्त्व’ में चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को, कार्तिक (Karthikeya) कृष्ण पक्ष की षष्ठी, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भी स्कंद षष्ठी का व्रत होता है। यह व्रत ‘संतान षष्ठी’ नाम से भी जाना जाता है। स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद में इस व्रत की महिमा का वर्णन मिलता है।

स्कंद पुराण में कार्तिकेय जी की पूरी कथा है दरअसल, जब भगवान शिव की पत्नी सती ने आत्‍मदाह कर लिया था, तब शिवजी भी आपा खो बैठे थे। इससे सृष्टि शक्तिहीन हो गई थी। जिसका असुरों ने फायदा उठाया। एक दैत्‍य जिसका नाम तारकासुर था, वो ब्रह्माजी से वरदान पाकर सभी प्राणियों के लिए अवध्‍य हो गया था। जब उसके अत्‍याचार बहुत बढ़ गए और अधर्म फैलने लगा।

Karthikeya Ki Aarti

भगवान कार्तिकेय की आरती

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