Divine Melodies: Lakshmi ki Aarti (लक्ष्मी माता की आरती) - Gyan.Gurucool
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ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी (Lakshmi) थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। म‍हर्षि भृगु विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षियों में स्थान मिला है। जब वे बड़ी हुई तो वह भगवान नारायण के गुण-प्रभाव का वर्णन सुनकर उनमें ही अनुरक्त हो गई और उनको पाने के लिए तपस्या करने लगी उसी तरह जिस तरह पार्वतीजी ने शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। वे समुद्र तट पर घोण तपस्या करने लगीं। तदनन्तर लक्ष्मी (Lakshmi) जी की इच्छानुसार भगवान विष्णु ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।

दरअसल, पुराणों की कथा में छुपे रहस्य को जानना थोड़ा मुश्किल होता है, इसे समझना जरूरी है। आपको शायद पता ही होगा कि शिवपुराण के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के माता-पिता का नाम सदाशिव और दुर्गा बताया गया है। उसी तरह तीनों देवियों के भी माता-पिता रहे हैं। समुद्र मंथन से जिस लक्ष्मी (Lakshmi) की उत्पत्ति हुई थी, दरअसल वह स्वर्ण के पाए जाने के ही संकेत रहा हो।शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी (Lakshmi) का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को उनकी पूजा की जाती है।
लक्ष्मी (Lakshmi) अभिव्यक्ति को दो रूपों में देखा जाता है। श्रीरूप में वे कमल पर विराजमान हैं और दूसरे रूप में वे भगवान विष्णु के साथ हैं। महाभारत में उनके दो प्रकार बताए गए हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार  उनके दो रूप हैं- भूदेवी और श्रीदेवी। भूदेवी धरती की देवी हैं और श्रीदेवी स्वर्ग की देवी। पहली उर्वरा से जुड़ी हैं, दूसरी महिमा और शक्ति से। भूदेवी सरल और सहयोगी पत्नी हैं जबकि श्रीदेवी चंचल हैं। विष्णु को हमेशा उन्हें खुश रखने के लिए प्रयास करना पड़ता है।

Lakshmi

Source – Pinterest

लक्ष्मी माता की आरती

ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥

ओम जय …॥

दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

ओम जय …॥

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥

ओम जय …॥

जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

ओम जय …॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥

ओम जय …॥

शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥

ओम जय …॥

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥

ओम जय …॥

 

Lakshmi ki Aarti

Om Jai Lakshmi Mata,Maiya Jai Lakshmi Mata।

Tumako Nishidin Sevat,Hari Vishnu Vidhata॥

Om Jai Lakshmi Mata॥

Uma Rama Brahmani,Tum Hi Jag-Mata।

Surya-Chandrama DhyavatNaarad Rishi Gata॥

Om Jai Lakshmi Mata॥

 

Durga Roop Niranjani,Sukh Sampatti Data।

Jo Koi Tumako Dhyavat,Riddhi-Siddhi Dhan Pata॥

Om Jai Lakshmi Mata॥

Tum Patal-Nivasini,Tum Hi Shubhdata।

Karma-Prabhav-Prakashini,Bhavanidhi Ki Trata॥

Om Jai Lakshmi Mata॥

Jis Ghar Mein Tum Rahti,Sab Sadgun Aata।

Sab Sambhav Ho Jata,Man Nahi Ghabrata॥

Om Jai Lakshmi Mata॥

Tum Bin Yagya Na Hote,Vastra Na Koi Pata।

Khan-Pan Ka Vaibhav,Sab Tumase Aata॥

Om Jai Lakshmi Mata॥

Shubh-Gun Mandir Sundar,Kshirodadhi-Jata।

Ratna Chaturdash Tum Bin,Koi Nahi Pata॥

Om Jai Lakshmi Mata॥

Mahalakshmi Ji Ki Aarti,Jo Koi Jan Gata।

Ur Anand Samata,Paap Utar Jata॥

Om Jai Lakshmi Mata॥

समुद्र मंथन की देवी को धन की देवी माना जाता है। उनके हाथ में स्वर्ण से भरा कलश है। इस कलश द्वारा वे धन की वर्षा करती रहती हैं। उनके वाहन को सफेद हाथी माना गया है। दरअसल, उनके 4 हाथ बताए गए हैं। वे 1 लक्ष्य और 4 प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं और मां वे सभी हाथों से अपने भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा करती हैं। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षियों में स्थान मिला है।
राजा दक्ष के भाई भृगु ऋषि थे। इसका मतलब वे राजा द‍क्ष की भतीजी थीं। माता लक्ष्मी (Lakshmi) के दो भाई दाता और विधाता थे। भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती उनकी सौतेली बहन थीं। सती राजा दक्ष की पुत्री थी।कुछ अनाज विक्रेता, अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए, अच्छी गुणवत्ता वाले अनाज को, निम्न गुणवत्ता वाले के साथ मिला देते हैं, जबकि कुछ व्यापारी अपने बिल में जो लिखा है, उससे कम तोलते हैं। जो दुसरो के साथ धोखा और कपट करते है, या दुसरे कि दौलत का लालच रखते है, वे असल में, भगवान को धोखा दे रहे है।
हर समय पैसे के बारे में मत सोचो! सतयुग के दौरान (मन, वचन और काया कि एकता वाला युग), एक व्यक्ति को वह सब उसी क्षण मिल जाता है, जब वह उसके बारे में सोचता है। जबकि कलियुग (वर्तमान युग जिसमें हम जी रहे है) का प्रभाव ऐसा है कि, कोई किसी को या किसी चीज़ को जितना अधिक याद करता रहता है, वह उससे उतना ही दूर होता जाता है।
Lakshmi ji ki aarti

ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी (Lakshmi) थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। म‍हर्षि भृगु विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे।

ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी (Lakshmi) थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। म‍हर्षि भृगु विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षियों में स्थान मिला है।

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