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धर्मशास्त्रों के अनुसार पितरों (Pitar) का निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। ये आत्माएं मृत्यु के बाद 1 से लेकर 100 वर्ष तक मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्य की स्थिति में रहती हैं।
पितृलोक के श्रेष्ठ को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है।धर्मशास्त्रों के अनुसार इनका निवास चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है।
पितर देवों की आरती
जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी ।
शरण पड़यो हूँ थारी बाबा, शरण पड़यो हूँ थारी ॥ जय जय …
आप ही रक्षक आप ही दाता, आप ही खेवनहारे ।
मैं मूरख हूँ कछु नहिं जाणूं, आप ही हो रखवारे ॥ जय जय …
आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी, करने मेरी रखवारी ।
हम सब जन हैं शरण आपकी, है ये अरज गुजारी ॥ जय जय …
देश और परदेश सब जगह, आप ही करो सहाई ।
काम पड़े पर नाम आपको, लगे बहुत सुखदाई ॥ जय जय …
भक्त सभी हैं शरण आपकी, अपने सहित परिवार ।
रक्षा करो आप ही सबकी, रटूँ मैं बारम्बार ॥ जय जय …
जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी ।
शरण पड़यो हूँ थारी बाबा, शरण पड़यो हूँ थारी ॥ जय जय …
॥ इति श्री पितर आरती संपूर्णम् ॥
Pitar Ji Ki Aarti
Jai Jai Pitar Maharaj, Main Sharan Padayon Hoon Thari.
Sharan Padayo Hoon Thari Baba, Sharan Padayo Hoon Thari. Jai Jai…
Aap Hi Rakshak Aap Hi Data, Aap Hi Khevanahari.
Main Morakh Hoon Kachhu Nahin Janu, Aap Hi Ho Rakhaware. Jai Jai…
Aap Khade Hain Haradam Har Ghadi, Karane Meri Rakhavaaree.
Ham Sab Jan Hain Sharan Aapki, Hai Ye Araj Gujari. Jai Jai…
Desh Aur Paradesh Sab Jagah, Aap Hi Karo Sahai.
Kam Pade Par Naam Aapko, Lage Bahut Sukhadai. Jai Jai…
Bhakt Sabhi Hain Sharan Apaki, Apne Sahit Parivar.
Raksha Karo Aap Hi Sabaki, Ratu Main Barambar. Jai Jai…
Jai Jai Pitar Maharaj, Main Sharan Padayon Hoon Thari.
Sharan Padayo Hoon Thari Baaba, Sharan Padayo Hoon Thari. Jai Jai…
तृलोक के श्रेष्ठ इनको न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है। पुराण अनुसार मुख्यत: पितरों को दो श्रेणियों में रखा जा सकता है- दिव्य और मनुष्य । दिव्य उस जमात का नाम है, जो जीवधारियों के कर्मों को देखकर मृत्यु के बाद उसे क्या गति दी जाए, इसका निर्णय करता है। इस जमात का प्रधान यमराज है।
अग्रिष्वात्त, बहिर्पद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये नौ दिव्य पितर (Pitar) बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं।
कुछ व्यक्ति अपने कर्मों से पुण्य अर्जित करके देव लोक एवं पितृ लोक में स्थान प्राप्त करते हैं यहां अपने योग्य शरीर मिलने तक ऐसी आत्माएं निवास करती हैं।
शास्त्रों में बताया गया है कि चन्द्रमा के ऊपर एक अन्य लोक है जो पितर (Pitar) लोक कहलाता है। शास्त्रों में पितरों को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है।
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि वह इनमें अर्यमा नामक पितर (Pitar) हैं। यह कह कर श्री कृष्ण यह स्पष्ट करते हैं कि पितर (Pitar) भी वही हैं इनकी पूजा करने से भगवान विष्णु की ही पूजा होती है।
विष्णु पुराण के अनुसार सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी के पृष्ठ भाग यानी पीठ से पितर (Pitar) उत्पन्न हुए। पितरों के उत्पन्न होने के बाद ब्रह्मा जी ने उस शरीर को त्याग दिया जिससे ये उत्पन्न हुए थे।

पितर देवों की आरती
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