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हिंदू धर्म में सूर्यदेव (Surya Dev) को देवता का रूप माना जाता है। इनकी वजह से ही पृथ्वी प्रकाशवान है। मान्यता है कि इनकी नियमित पूजा करने से तेज और सकारात्मक शक्ति प्राप्त होती है। ज्योतिषियों के अनुसार, नवग्रहों में से सूरज को राजा का पद प्राप्त है।विज्ञान में भी बताया जाता है कि बिना इनके पृथ्वी पर जीवन असंभव है, इसलिए वेदों में इसे जगत की आत्मा भी कहा जाता है।
पौराणिक सन्दर्भ में सूर्यदेव (Surya Dev) की उत्पत्ति के अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। पुराणों अनुसार सूर्यदेव (Surya Dev) के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है। अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है।
33 देवताओं में अदिति के 12 पुत्र शामिल हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। 12 आदित्यों के अलावा 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विनकुमार मिलाकर 33 देवताओं का एक वर्ग है। ब्रह्माजी के पुत्र मरिचि से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप से विवस्वान और विवस्वान के पुत्र वैवस्त मनु थे। विवस्वान को ही सूर्यदेव (Surya Dev) कहा जाता है।

Surya Dev
श्री सूर्यदेव की आरती
जय कश्यप-नन्दन,ॐ जय अदिति नन्दन।
त्रिभुवन – तिमिर – निकन्दन,भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सप्त-अश्वरथ राजित,एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी,मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सुर – मुनि – भूसुर – वन्दित,विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर,दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सकल – सुकर्म – प्रसविता,सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन,भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
कमल-समूह विकासक,नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरतअति मनसिज-संतापा॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
नेत्र-व्याधि हर सुरवर,भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत,परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
सूर्यदेव करुणाकर,अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब,तत्त्वज्ञान दीजै॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।
Surya Dev ji ki Aarti
Jai Kashyap-Nandan,Om Jai Aditi-Nandan।
Tribhuvana-Timira-Nikandana,Bhakta-Hridaya-Chandana॥
Jai Kashyap-Nandan, Om Jai Aditi-Nandan।
Sapta-Ashvaratha Rajita,Ek Chakradhari।
Dukhahari-Sukhakari,Manasa-Mala-Hari॥
Jai Kashyap-Nandan, Om Jai Aditi-Nandan।
Sura-Muni-Bhusura-Vandita,Vimala Vibhavashali।
Agha-Dala-Dalana Diwakara,Divya Kirana Mali॥
Jai Kashyap-Nandan, Om Jai Aditi-Nandan।
Sakala-Sukarma-Prasavita,Savita Shubhakari।
Vishwa-Vilochana Mochana,Bhava Bandhana Bhari॥
Jai Kashyap-Nandan, Om Jai Aditi-Nandan।
Kamala-Samuha-Vikasaka,Nashaka Traya Tapa।
Sevata Sahaja Harata,Ati Manasija-Santapa॥
Jai Kashyap-Nandan, Om Jai Aditi-Nandan।
Netra-Vyadhi-HaraSurvara Bhu-Pida-Hari।
Vrishti-VimochanaSantata Parahita-Vratadhari॥
Jai Kashyap-Nandan, Om Jai Aditi-Nandan।
Suryadeva Karunakara,Ab Karuna Kijai।
Hara Agyana-MohaSab Tatvagyana Dijai॥
Jai Kashyap-Nandan, Om Jai Aditi-Nandan।
संज्ञा विवस्वान् की पत्नी हुई। उसके गर्भ से उन्होंने तीन संतानें उत्पन्न की। जिनमें एक कन्या और दो पुत्र थे। सबसे पहले प्रजापति श्राद्धदेव, जिन्हें वैवस्वत मनु कहते हैं, उत्पन्न हुए। तत्पश्चात यम और यमुना- ये जुड़वीं संतानें हुई। यमुना को ही कालिन्दी कहा गया।भगवान् इनके तेजस्वी स्वरूप को देखकर संज्ञा उसे सह न सकी। उसने अपने ही सामान वर्णवाली अपनी छाया प्रकट की।
वह छाया स्वर्णा नाम से विख्यात हुई। उसको भी संज्ञा ही समझ कर सूरज ने उसके गर्भ से अपने ही सामान तेजस्वी पुत्र उत्पन्न किया। वह अपने बड़े भाई मनु के ही समान था। इसलिए सावर्ण मनु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उस छाया से शनैश्चर (शनि) और तपती नामक कन्या हुई।
इनकी पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूरज का दर्शन करते हुए उन्हें ॐ घृणि सूर्याय नम: कहते हुए जल अर्पित करें।सूर्यदेव (Surya Dev) को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल दें। सूरज पूजन के लिए तांबे की थाली और तांबे के लोटे का उपयोग करें।
लाल चंदन और लाल फूल की व्यवस्था रखें। एक दीपक लें। लोटे में जल लेकर उसमें एक चुटकी लाल चंदन का पाउडर और लाल फूल भी डाल लें। थाली में दीपक और लोटा रख लें।

श्री सूर्यदेव की आरती
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